दान ना देना आदि पितृ दोष के कारण बनते हैवर्तमान समय में समान्यतः हर मनुष्य कड़ी प्रतिस्पर्धा एवं अति व्यस्तता के कारण अपने माता पिता, बड़े बुजर्गो तथा पित्तरों की चाहे अनचाहे अनदेखा कर देता है। उसका धर्म के विरूद्ध आचरण, गुरू की पत्नी, पुत्री या अन्य स्त्री से अनैतिक सम्बन्ध, माँस मदिरा का सेवन करना, किसी को बेवजह सताना, उधार लेकर धन वापस न करना, दूसरो का धन हड़पना, झूठी गवाही देना, प्रभु, पित्तरों के नाम से दान ना देना आदि पितृ दोष के कारण बनते है। व्यक्ति के मरने के बाद इन कर्मों के कारण दोबारा जन्म लेने पर उसकी कुण्डली में पितृ दोष होता है। पितृ दोष के कारण व्यक्ति को वंशानुगत, मानसिक एवं शारीरिक घोर कष्ट प्राप्त होते है।व्यक्ति की जन्म कुण्डलीव्यक्ति की जन्म कुण्डली में उत्तम ग्रह योग होते है व्यक्ति बहुत परिश्रम भी करता है उसके घर का वास्तु भी ठीक होता है, वह धर्म का पालन भी करता है परन्तु फिर भी वह जीवन में अस्थिरता, परेशानियां, घर में बीमारी, कलह, धन की न्यूनता या खूब धनार्जन के बाद भी अत्याधिक खर्चा, अचानक अपयश, विवाह में विलम्ब आदि से पीड़ित रहता है तो इसका अर्थ है कि वे वर्तमान समय कलयुग के सबसे घातक दोष पितृ दोष से पीड़ित है।सभी धर्मों में पित्तरों को अति महत्वपूर्ण स्थानसंसार के सभी धर्मों में पित्तरों को अति महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है, हिन्दू धर्म में तो पित्तरों को देवतुल्य माना गया है। आप चाहे किसी भी धर्म को मानने वाले हो घर में प्रत्येक नवीन एवं शुभ कार्य में सर्वप्रथम पित्तरों का स्मरण करके उनसे आशीर्वाद लेकर ही कार्य प्रारम्भ करना चाहिए तब उस कार्य में कभी भी किसी प्रकार का अवरोध उत्पन्न बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रमपितृ दोष से पीड़ित व्यक्तिपितृ दोष से पीड़ित व्यक्ति को प्रतिदिन शिव लिंग पर जल चढ़ाकर महामृत्यूंजय का जाप करना चाहिए । माँ काली की नियमित उपासना से भी पितृ दोष में लाभ मिलता है। कौएं तथा पीपल के वृक्ष को पित्तरों का प्रतीक माना गया है अतः मनुष्यों द्वारा रविवार को छोड़कर पीपल के जड़ में प्रतिदिन सादा जल एवं शनिवार को दूध, शहद मिश्रित जल देने से तथा कौओं को नित्य रोटी खिलाने से भी बहुत लाभ मिलता है।पितृ दोष निवारण के लियेपितृ दोष निवारण के लिये यदि कोई व्यक्ति सोमवती अमावस्या के दिन पीपल के पेड़ पर मीठा जलए मिष्ठान एवं जनेऊ अर्पित करते हुये “ऊँ नमो भगवते वासुदेवाएं नमः” मंत्र का जाप करते हुये 108 परिक्रमा करे तत्पश्चात् अपने अपराधों एवं त्रुटियों के लिये क्षमा मांगे तो पितृ दोष से उत्पन्न समस्त समस्याओं का निवारण हो जाता है।
दान ना देना आदि पितृ दोष के कारण बनते है
वर्तमान समय में समान्यतः हर मनुष्य कड़ी प्रतिस्पर्धा एवं अति व्यस्तता के कारण अपने माता पिता, बड़े बुजर्गो तथा पित्तरों की चाहे अनचाहे अनदेखा कर देता है। उसका धर्म के विरूद्ध आचरण, गुरू की पत्नी, पुत्री या अन्य स्त्री से अनैतिक सम्बन्ध, माँस मदिरा का सेवन करना, किसी को बेवजह सताना, उधार लेकर धन वापस न करना, दूसरो का धन हड़पना, झूठी गवाही देना, प्रभु, पित्तरों के नाम से दान ना देना आदि पितृ दोष के कारण बनते है। व्यक्ति के मरने के बाद इन कर्मों के कारण दोबारा जन्म लेने पर उसकी कुण्डली में पितृ दोष होता है। पितृ दोष के कारण व्यक्ति को वंशानुगत, मानसिक एवं शारीरिक घोर कष्ट प्राप्त होते है।
व्यक्ति की जन्म कुण्डली
व्यक्ति की जन्म कुण्डली में उत्तम ग्रह योग होते है व्यक्ति बहुत परिश्रम भी करता है उसके घर का वास्तु भी ठीक होता है, वह धर्म का पालन भी करता है परन्तु फिर भी वह जीवन में अस्थिरता, परेशानियां, घर में बीमारी, कलह, धन की न्यूनता या खूब धनार्जन के बाद भी अत्याधिक खर्चा, अचानक अपयश, विवाह में विलम्ब आदि से पीड़ित रहता है तो इसका अर्थ है कि वे वर्तमान समय कलयुग के सबसे घातक दोष पितृ दोष से पीड़ित है।
सभी धर्मों में पित्तरों को अति महत्वपूर्ण स्थान
संसार के सभी धर्मों में पित्तरों को अति महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है, हिन्दू धर्म में तो पित्तरों को देवतुल्य माना गया है। आप चाहे किसी भी धर्म को मानने वाले हो घर में प्रत्येक नवीन एवं शुभ कार्य में सर्वप्रथम पित्तरों का स्मरण करके उनसे आशीर्वाद लेकर ही कार्य प्रारम्भ करना चाहिए तब उस कार्य में कभी भी किसी प्रकार का अवरोध उत्पन्न
पितृ दोष से पीड़ित व्यक्ति
पितृ दोष से पीड़ित व्यक्ति को प्रतिदिन शिव लिंग पर जल चढ़ाकर महामृत्यूंजय का जाप करना चाहिए । माँ काली की नियमित उपासना से भी पितृ दोष में लाभ मिलता है। कौएं तथा पीपल के वृक्ष को पित्तरों का प्रतीक माना गया है अतः मनुष्यों द्वारा रविवार को छोड़कर पीपल के जड़ में प्रतिदिन सादा जल एवं शनिवार को दूध, शहद मिश्रित जल देने से तथा कौओं को नित्य रोटी खिलाने से भी बहुत लाभ मिलता है।
पितृ दोष निवारण के लिये
पितृ दोष निवारण के लिये यदि कोई व्यक्ति सोमवती अमावस्या के दिन पीपल के पेड़ पर मीठा जलए मिष्ठान एवं जनेऊ अर्पित करते हुये “ऊँ नमो भगवते वासुदेवाएं नमः” मंत्र का जाप करते हुये 108 परिक्रमा करे तत्पश्चात् अपने अपराधों एवं त्रुटियों के लिये क्षमा मांगे तो पितृ दोष से उत्पन्न समस्त समस्याओं का निवारण हो जाता है।
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