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परालौकिक शक्तिपरावैज्ञानिकों को अपने अनुसंधानों के दौरान अनेकों साक्ष्य मिलें है जिससे यह पता चलता है कि तमाम पित्तरों ने समय समय पर अपने आत्मीयों की कठिनाइयों में सहायता की है तथा उनका उचित मार्गदर्शन भी किया है कहीं यह नजर आये है कहीं उनकी आवाज सुनाई पड़ी है और कहीं यह स्पष्ट आभास हुआ है कि कोई परालौकिक शक्ति हमारी मददगार बनी है प्रश्न हमारा उनके प्रति श्रद्धा विश्वास एवं कठिनाइयों में उनका स्मरण करने का हैआरम्भिक जन्महिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार चाहे शरीरधारियों की 84 लाख योनियां ही क्यों ना हो परन्तु उनका आरम्भिक जन्म एक रसायनिक तत्व से ही हुआ है। सृष्टि के आरम्भ में एक ही जीव रसायन था और वही अभी तक समस्त प्राणियों की संरचना का एकमात्र कारण है। परिस्थितियों के लम्बे समय के क्रमिक विकास के कारण एक से अनेक बने प्राणधारी विभिन्न स्तर विभिन्न आकृतियों एवं प्रकृतियों के बनते चले गये है और आज इतनी अधिक संख्या में जीव योनियां बन गयी है।पित्तर पूजन एवं श्राद्ध धर्म की परम्पराहमें अपने पित्तरों के प्रति वैसी ही श्रद्धा भावना रखनी चाहिये जैसा हम प्रभु के प्रति रखते है। संसार में सभी धर्मों एवं सभ्यताओं में पित्तरों के प्रति कर्त्तव्य पूरा करने को कहा गया है। अनेक धर्मों में अलग अलग रीतियों से पित्तर पूजन एवं श्राद्ध धर्म की परम्परा प्रचलित है। पित्तरों को स्थूल सहायता की नही वरन् सूक्ष्म भावनात्मक सहयोग एवं श्रद्धा मात्र की ही आवश्यकता होती है क्योंकि वह सूक्ष्म शरीर में ही रहते है तथा प्रसन्न होने पर यही पित्तर बदले में प्रेरणा शक्ति सहयोग मार्गदर्शन एवं सफलता प्रदान करते है

परालौकिक शक्ति

परावैज्ञानिकों को अपने अनुसंधानों के दौरान अनेकों साक्ष्य मिलें है जिससे यह पता चलता है कि तमाम पित्तरों ने समय समय पर अपने आत्मीयों की कठिनाइयों में सहायता की है तथा उनका उचित मार्गदर्शन भी किया है कहीं यह नजर आये है कहीं उनकी आवाज सुनाई पड़ी है और कहीं यह स्पष्ट आभास हुआ है कि कोई परालौकिक शक्ति हमारी मददगार बनी है प्रश्न हमारा उनके प्रति श्रद्धा विश्वास एवं कठिनाइयों में उनका स्मरण करने का है

आरम्भिक जन्म

हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार चाहे शरीरधारियों की 84 लाख योनियां ही क्यों ना हो परन्तु उनका आरम्भिक जन्म एक रसायनिक तत्व से ही हुआ है। सृष्टि के आरम्भ में एक ही जीव रसायन था और वही अभी तक समस्त प्राणियों की संरचना का एकमात्र कारण है। परिस्थितियों के लम्बे समय के क्रमिक विकास के कारण एक से अनेक बने प्राणधारी विभिन्न स्तर विभिन्न आकृतियों एवं प्रकृतियों के बनते चले गये है और आज इतनी अधिक संख्या में जीव योनियां बन गयी है।

पित्तर पूजन एवं श्राद्ध धर्म की परम्परा

हमें अपने पित्तरों के प्रति वैसी ही श्रद्धा भावना रखनी चाहिये जैसा हम प्रभु के प्रति रखते है। संसार में सभी धर्मों एवं सभ्यताओं में पित्तरों के प्रति कर्त्तव्य पूरा करने को कहा गया है। अनेक धर्मों में अलग अलग रीतियों से पित्तर पूजन एवं श्राद्ध धर्म की परम्परा प्रचलित है। पित्तरों को स्थूल सहायता की नही वरन् सूक्ष्म भावनात्मक सहयोग एवं श्रद्धा मात्र की ही आवश्यकता होती है क्योंकि वह सूक्ष्म शरीर में ही रहते है तथा प्रसन्न होने पर यही पित्तर बदले में प्रेरणा शक्ति सहयोग मार्गदर्शन एवं सफलता प्रदान करते है

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