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अमावस्या पर पितरों की विदाई कैसे करें? पितृपक्ष की समाप्ति पर पितरों की विदाई कैसे करें। पितृपक्ष की अमावस्या की शाम को सूर्यास्त के समय दीपक जलाते हुए दीपक की लौ से प्रार्थना करना है कि हमारे दिवंगत पूर्वज जो हमारे घर पर, हमारे आसपास, धरती पर आए हैं वह दीपक की लौ की रोशनी पर बैठकर पितृ तृप्त होकर जाएं और हमें आशीर्वाद दें। पितरों की मुक्ति एवं सद्गति हमें सौभाग्य प्राप्त प्रदान प्रदान करें। वनिता कासनियां पंजाब द्वारा श्रद्धा का दीपक जलाकर श्रद्धा का दीपक जलाकर में पितरों को नमन कर रही हूं। यही इस उत्तर का मूल स्रोत है। चित्र सोर्स है गूगल इमेजेस।

अमावस्या पर पितरों की विदाई कैसे करें?   पितृपक्ष की समाप्ति पर पितरों की विदाई कैसे करें। पितृपक्ष की अमावस्या की शाम को सूर्यास्त के समय दीपक जलाते हुए दीपक की लौ से प्रार्थना करना है कि हमारे दिवंगत पूर्वज जो हमारे घर पर, हमारे आसपास, धरती पर आए हैं वह दीपक की लौ की रोशनी पर बैठकर पितृ तृप्त होकर जाएं और हमें आशीर्वाद दें। पितरों की मुक्ति एवं सद्गति हमें सौभाग्य प्राप्त प्रदान प्रदान करें। वनिता कासनियां पंजाब द्वारा श्रद्धा का दीपक जलाकर श्रद्धा का दीपक जलाकर में पितरों को नमन कर रही हूं। यही इस उत्तर का मूल स्रोत है। चित्र सोर्स है गूगल इमेजेस।

पितृ दोष मुक्ति के उपाय ⇐ पितृदोष किसे कहते है ? जब सूर्य और राहू की युति हो रही हो तो यह माना जाता है कि पितृ दोष योग बन रहा है। शास्त्र के अनुसार सूर्य तथा राहू जिस भी भाव में बैठते है, उस भाव के सभी फल नष्ट हो जाते है। व्यक्ति की कुण्डली में एक ऎसा दोष है जो इन सब दु:खों को एक साथ देने की क्षमता रखता है, इस दोष को पितृ दोष के नाम से जाना जाता है।पितृ दोष मुक्ति के उपाय ⇐ पितृदोष किसे कहते है ?कुन्डली का नवां घर धर्म का घर कहा जाता है, यह पिता का घर भी होता है, अगर किसी प्रकार से नवां घर खराब ग्रहों से ग्रसित होता है तो सूचित करता है कि पूर्वजों की इच्छायें अधूरी रह गयीं थी, जो प्राकृतिक रूप से खराब ग्रह होते है वे सूर्य मंगल शनि कहे जाते है और कुछ लगनों में अपना काम करते हैं, लेकिन राहु और केतु सभी लगनों में अपना दुष्प्रभाव देते हैं, नवां भाव, नवें भाव का मालिक ग्रह, नवां भाव चन्द्र राशि से और चन्द्र राशि से नवें भाव का मालिक अगर राहु या केतु से ग्रसित है तो यह पितृ दोष कहा जाता है। इस प्रकार का जातक हमेशा किसी न किसी प्रकार की टेंसन में रहता है, उसकी शिक्षा पूरी नही हो पाती है, वह जीविका के लिये तरसता रहता है, वह किसी न किसी प्रकार से दिमागी या शारीरिक रूप से अपंग होता है।अगर किसी भी तरह से नवां भाव या नवें भाव का मालिक राहु या केतु से ग्रसित है तो यह सौ प्रतिशत पितृदोष के कारणों में आजाता है।"पितृ दोष के लिये उपाय" सोमवती अमावस्या को (जिस अमावस्या को सोमवार हो) पास के पीपल के पेड के पास जाइये, उस पीपल के पेड को एक जनेऊ दीजिये और एक जनेऊ भगवान विष्णु के नाम का उसी पीपल को दीजिये, पीपल के पेड की और भगवान विष्णु की प्रार्थना कीजिये, और एक सौ आठ परिक्रमा उस पीपल के पेड की दीजिये, हर परिक्रमा के बाद एक मिठाई जो भी आपके स्वच्छ रूप से हो पीपल को अर्पित कीजिये। परिक्रमा करते वक्त :ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का जाप करते जाइये। परिक्रमा पूरी करने के बाद फ़िर से पीपल के पेड और भगवान विष्णु के लिये प्रार्थना कीजिये और जो भी जाने अन्जाने में अपराध हुये है उनके लिये क्षमा मांगिये। सोमवती अमावस्या की पूजा से बहुत जल्दी ही उत्तम फ़लों की प्राप्ति होने लगती है।राहू गृहएक और उपाय है कौओं और मछलियों को चावल और घी मिलाकर बनाये गये लड्डू हर शनिवार को दीजिये। पितर दोष किसी भी प्रकार की सिद्धि को नहीं आने देता है। सफ़लता कोशों दूर रहती है और व्यक्ति केवल भटकाव की तरफ़ ही जाता रहता है। लेकिन अगर कोई व्यक्ति माता काली का उपासक है तो किसी भी प्रकार का दोष उसकी जिन्दगी से दूर रहता है। लेकिन पितर जो कि व्यक्ति की अनदेखी के कारण या अधिक आधुनिकता के प्रभाव के कारण पिशाच योनि मे चले जाते है, वे देखी रहते है, उनके दुखी रहने का कारण मुख्य यह माना जाता है कि उनके ही खून के होनहार उन्हे भूल गये है और उनकी उनके ही खून के द्वारा मान्यता नहीं दी जाती है। पितर दोष हर व्यक्ति को परेशान कर सकता है इसलिये निवारण बहुत जरूरी है।

पितृ दोष मुक्ति के उपाय ⇐ पितृदोष किसे कहते है ?  जब सूर्य और राहू की युति हो रही हो तो यह माना जाता है कि पितृ दोष योग बन रहा है। शास्त्र के अनुसार सूर्य तथा राहू जिस भी भाव में बैठते है, उस भाव के सभी फल नष्ट हो जाते है। व्यक्ति की कुण्डली में एक ऎसा दोष है जो इन सब दु:खों को एक साथ देने की क्षमता रखता है, इस दोष को पितृ दोष के नाम से जाना जाता है। पितृ दोष मुक्ति के उपाय ⇐ पितृदोष किसे कहते है ? कुन्डली का नवां घर धर्म का घर कहा जाता है, यह पिता का घर भी होता है, अगर किसी प्रकार से नवां घर खराब ग्रहों से ग्रसित होता है तो सूचित करता है कि पूर्वजों की इच्छायें अधूरी रह गयीं थी, जो प्राकृतिक रूप से खराब ग्रह होते है वे सूर्य मंगल शनि कहे जाते है और कुछ लगनों में अपना काम करते हैं, लेकिन राहु और केतु सभी लगनों में अपना दुष्प्रभाव देते हैं, नवां भाव, नवें भाव का मालिक ग्रह, नवां भाव चन्द्र राशि से और चन्द्र राशि से नवें भाव का मालिक अगर राहु या केतु से ग्रसित है तो यह पितृ दोष कहा जाता है। इस प्रकार का जातक हमेशा किसी न किसी प्रकार की टेंसन में रहता है, उसकी शिक्षा प...

आज का प्रेरक प्रसंग ⚜️* *!! जैसा बोओगे वैसा काटोगे !!*~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~एक गांव में तीन चोर रहते थे। एक रात उन्होंने एक धनी आदमी के यहां चोरी की। उन्होंने सारा धन एक थैले में भरा और उसे लेकर जंगल की ओर भाग निकले। जंगल में पहुंचने पर उन्हें जोर की भूख लगी। वहां खाने को तो कुछ था नहीं, इसलिए उनमें से एक चोर पास के एक गांव से खाना लेने गया। बाकी के दोनों चोर जंगल में चोरी के माल की रखवाली कर रहे थे। जो चोर खाना लेने गया था, उसकी नीयत खराब थी। पहले उसने होटल में खुद भोजन किया। फिर उसने अपने साथियों के लिए खाना खरीद कर उसमें तेज जहर मिला दिया। उसने सोचा कि जहरीला खाना खाकर उसके दोनों साथी मर जाएंगे तो सारा धन उसका हो जाएगा। जंगल में दोनों चोरों ने खाना लेने गए अपने साथी चोर की हत्या करने की योजना बना ली थी। वे उसे अपने रास्ते से हटाकर सारा धन आपस में बांट लेना चाहते थे। तीनों चोरों ने अपनी-अपनी योजनाओं के अनुसार कार्य किया। पहला चोर जैसे ही जहरीला भोजन लेकर जंगल में पहुंचा। उसके दोनों साथी उस पर टूट पड़े। उन्होंने उसका काम तमाम कर दिया फिर वे निश्चिंत होकर भोजन करने बैठ गए। मगर जहरीला भोजन खाते ही वे दोनों भी तड़प-तड़प कर मर गए। इस प्रकार तीनों का अंत भी बुरा ही हुआ। *शिक्षा:-*बुराई का अंत बुरा ही होता है।*सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।**जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।*✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️ऐसे और पोस्ट देखने के लिए और एक खूबसूरत सी कहानी से जुड़ने के लिए क्लिक करें 👇👇 बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम से

*⚜️ आज का प्रेरक प्रसंग ⚜️*        *!! जैसा बोओगे वैसा काटोगे !!* ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ एक गांव में तीन चोर रहते थे। एक रात उन्होंने एक धनी आदमी के यहां चोरी की। उन्होंने सारा धन एक थैले में भरा और उसे लेकर जंगल की ओर भाग निकले। जंगल में पहुंचने पर उन्हें जोर की भूख लगी। वहां खाने को तो कुछ था नहीं, इसलिए उनमें से एक चोर पास के एक गांव से खाना लेने गया। बाकी के दोनों चोर जंगल में चोरी के माल की रखवाली कर रहे थे।   जो चोर खाना लेने गया था, उसकी नीयत खराब थी। पहले उसने होटल में खुद भोजन किया। फिर उसने अपने साथियों के लिए खाना खरीद कर उसमें तेज जहर मिला दिया। उसने सोचा कि जहरीला खाना खाकर उसके दोनों साथी मर जाएंगे तो सारा धन उसका हो जाएगा।  जंगल में दोनों चोरों ने खाना लेने गए अपने साथी चोर की हत्या करने की योजना बना ली थी। वे उसे अपने रास्ते से हटाकर सारा धन आपस में बांट लेना चाहते थे।  तीनों चोरों ने अपनी-अपनी योजनाओं के अनुसार कार्य किया। पहला चोर जैसे ही जहरीला भोजन लेकर जंगल में पहुंचा। उसके दोनों साथी उस पर टूट पड़े। उन्होंने उसका काम तमाम कर ...

🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️*पितृ पक्ष की पौराणिक कथा**✍️जोगे तथा भोगे दो भाई थे। दोनों अलग-अलग रहते थे। जोगे धनी था और भोगे निर्धन। दोनों में परस्पर बड़ा प्रेम था। जोगे की पत्नी को धन का अभिमान था, किंतु भोगे की पत्नी बड़ी सरल हृदय थी।* *✍️पितृ पक्ष आने पर जोगे की पत्नी ने उससे पितरों का श्राद्ध करने के लिए कहा तो जोगे इसे व्यर्थ का कार्य समझकर टालने की चेष्टा करने लगा, किंतु उसकी पत्नी समझती थी कि यदि ऐसा नहीं करेंगे तो लोग बातें बनाएंगे। फिर उसे अपने मायके वालों को दावत पर बुलाने और अपनी शान दिखाने का यह उचित अवसर लगा।* *✍️अतः वह बोली- 'आप शायद मेरी परेशानी की वजह से ऐसा कह रहे हैं, किंतु इसमें मुझे कोई परेशानी नहीं होगी। मैं भोगे की पत्नी को बुला लूंगी। दोनों मिलकर सारा काम कर लेंगी।' फिर उसने जोगे को अपने पीहर न्यौता देने के लिए भेज दिया।* *✍️दूसरे दिन उसके बुलाने पर भोगे की पत्नी सुबह-सवेरे आकर काम में जुट गई। उसने रसोई तैयार की। अनेक पकवान बनाए फिर सभी काम निपटाकर अपने घर आ गई। आखिर उसे भी तो पितरों का श्राद्ध-तर्पण करना था।* *✍️इस अवसर पर न जोगे की पत्नी ने उसे रोका, न वह रुकी। शीघ्र ही दोपहर हो गई। पितर भूमि पर उतरे। जोगे-भोगे के पितर पहले जोगे के यहां गए तो क्या देखते हैं कि उसके ससुराल वाले वहां भोजन पर जुटे हुए हैं। निराश होकर वे भोगे के यहां गए। वहां क्या था? मात्र पितरों के नाम पर 'अगियारी' दे दी गई थी। पितरों ने उसकी राख चाटी और भूखे ही नदी के तट पर जा पहुंचे।* *✍️थोड़ी देर में सारे पितर इकट्ठे हो गए और अपने-अपने यहां के श्राद्धों की बढ़ाई करने लगे। जोगे-भोगे के पितरों ने भी अपनी आपबीती सुनाई। फिर वे सोचने लगे- अगर भोगे समर्थ होता तो शायद उन्हें भूखा न रहना पड़ता, मगर भोगे के घर में तो दो जून की रोटी भी खाने को नहीं थी। यही सब सोचकर उन्हें भोगे पर दया आ गई। अचानक वे नाच-नाचकर गाने लगे- 'भोगे के घर धन हो जाए। भोगे के घर धन हो जाए।'* *✍️सांझ होने को हुई। भोगे के बच्चों को कुछ भी खाने को नहीं मिला था। उन्होंने मां से कहा- भूख लगी है। तब उन्हें टालने की गरज से भोगे की पत्नी ने कहा- 'जाओ! आंगन में हौदी औंधी रखी है, उसे जाकर खोल लो और जो कुछ मिले, बांटकर खा लेना।'* *✍️बच्चे वहां पहुंचे, तो क्या देखते हैं कि हौदी मोहरों से भरी पड़ी है। वे दौड़े-दौड़े मां के पास पहुंचे और उसे सारी बातें बताईं। आंगन में आकर भोगे की पत्नी ने यह सब कुछ देखा तो वह भी हैरान रह गई।*By वनिता कासनियां पंजाब *✍️इस प्रकार भोगे भी धनी हो गया, मगर धन पाकर वह घमंडी नहीं हुआ। दूसरे साल का पितृ पक्ष आया। श्राद्ध के दिन भोगे की स्त्री ने छप्पन प्रकार के व्यंजन बनाएं। ब्राह्मणों को बुलाकर श्राद्ध किया। भोजन कराया, दक्षिणा दी। जेठ-जेठानी को सोने-चांदी के बर्तनों में भोजन कराया *इस प्रकार से पितृ बड़े प्रसन्न हुए।*🙏🙏🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷 *ऐसे और पोस्ट देखने के लिए और खूबसूरत सी कहानीया से जुड़ने के लिए क्लिक करें 👇👇बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम::-

🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️ *पितृ पक्ष की पौराणिक कथा* *✍️जोगे तथा भोगे दो भाई थे। दोनों अलग-अलग रहते थे। जोगे धनी था और भोगे निर्धन। दोनों में परस्पर बड़ा प्रेम था। जोगे की पत्नी को धन का अभिमान था, किंतु भोगे की पत्नी बड़ी सरल हृदय थी।*   *✍️पितृ पक्ष आने पर जोगे की पत्नी ने उससे पितरों का श्राद्ध करने के लिए कहा तो जोगे इसे व्यर्थ का कार्य समझकर टालने की चेष्टा करने लगा, किंतु उसकी पत्नी समझती थी कि यदि ऐसा नहीं करेंगे तो लोग बातें बनाएंगे। फिर उसे अपने मायके वालों को दावत पर बुलाने और अपनी शान दिखाने का यह उचित अवसर लगा।*   *✍️अतः वह बोली- 'आप शायद मेरी परेशानी की वजह से ऐसा कह रहे हैं, किंतु इसमें मुझे कोई परेशानी नहीं होगी। मैं भोगे की पत्नी को बुला लूंगी। दोनों मिलकर सारा काम कर लेंगी।' फिर उसने जोगे को अपने पीहर न्यौता देने के लिए भेज दिया।*   *✍️दूसरे दिन उसके बुलाने पर भोगे की पत्नी सुबह-सवेरे आकर काम में जुट गई। उसने रसोई तैयार की। अनेक पकवान बनाए फिर सभी काम निपटाकर अपने घर आ गई। आखिर उसे भी तो पितरों का श्राद्ध-तर्पण करना था।*   *✍️इस अवसर पर न जोगे की ...

पित्तरों को मोक्ष प्रदान करने के लिये पिण्डदानपित्तरों को मोक्ष प्रदान करने के लिये पिण्डदान करना चाहिए, शरीर को पिण्ड का प्रतीक माना गया है, पिण्ड का अर्थ है गोलाकार। पिण्डदान करने के लिये जौ, चावल के आटे को गूंदकर गोलाकार पिण्ड बनाया जाता है या पके हुये चावल को मसलकर भी पिण्ड बनाते है। हिन्दू धर्म में गया, कुरूक्षेत्र, पुष्कर, हरिद्वार, वाराणसी में पिण्डदान का बहुत महत्व बताया गया है वस्तुतः पिण्डदान को मोक्ष प्राप्ति का सरल मार्ग भी कहा गया है। पितृ पक्ष में श्रद्धा एवं भक्ति के साथ नियमपूर्वक अपने समस्त पित्तरों का श्राद्ध करने, तर्पण करने एवं उनके निमित दान-पुण्य करने पर से भी पित्तर प्रसन्न होकर, आशीर्वाद देकर मनुष्य के जीवन के समस्त कष्टों का निवारण करते है।शास्त्रो के अनुसार प्रत्येक अमावस्या कोशास्त्रो के अनुसार प्रत्येक अमावस्या को पित्तर अपने घर पर आते है अतः इस दिन हर व्यक्ति को यथाशक्ति उनके नाम से दान करना चाहिएए इस दिन बबूल के पेड़ पर संध्या के समय भोजन रखने से भी पित्तर प्रसन्न होते है। प्रत्येक अमावस्या को गाय को पांच फल भी खिलाने चाहिए।सर्वपितृ दोष अमावस्या का अमोघ उपायपितृ पक्ष के 16 दिन हम अपने पितरों का ध्यान, तर्पण, श्राद्ध एवं उनके निमित दान करते है लेकिन पितृ पक्ष के अंतिम दिन अर्थात सर्वपितृ दोष अमावस्या को नीचे दिया गया उपाय अवश्य ही करें जिससे हमारे पितृ पूर्णतया संतुष्ट रहे एवं हमें अपने पितरों की कृपा अवश्य ही प्राप्त हो ।पितृ पक्ष के अंतिम दिन अर्थात सर्व पितृ दोष अमावस्या के दिन में किसी भी समय,स्टील के लोटे में, दूध ,पानी,काले और सफ़ेद तिल एवं जौ मिला ले, इसके साथ कोई भी सफ़ेद मिठाई ,एक नारियल, कुछ सिक्के,तथा एक जनेऊ लेकर पीपल वृक्ष के नीचे जाकर सर्व प्रथम लोटे की समस्त सामग्री पीपल की जड़ में अर्पित कर दे, तथा इस मंत्र का जाप भी लगातार करते रहें, ॐ सर्व पितृ देवताभ्यो नमःइसके पश्चात निम्न मंत्र को पड़ते हुए पीपल पर जनेऊ अर्पित करे ।ॐ प्रथम पितृ नारायणाय नमःइसके पश्चात पीपल वृक्ष के नीचे मिठाई, दक्षिणा तथा नारियल रखकर दो अगरबत्ती जलाकर निम्न मंत्र को पड़ते हुए सात बार परिक्रमा करे ।ॐ नमो भगवते वासुदेवायअंत में भगवान विष्णु से प्रार्थना करे.की मुझ पर और मेरे पूरे वंश पर आपकी तथा हमारे पित्रो की सदैव कृपा बानी रहे । इस क्रिया से जातक को पित्रो की कृपा प्राप्त होती है, जीवन में अस्थिरताएँ नहीं आती है तथा जीवन में सभी क्षेत्रों में मनवाँछित सफलता प्राप्त होती है. इसलिए यह प्रयोग अवश्य ही करना चाहिए ।पितृ पक्ष की समाप्ति पर पितरों की विदाईपितृ पक्ष में श्राद्ध करके पितृ अमावस्या के बाद सूर्यास्त के समय पितरों की पूर्ण आदर और श्रद्धा से विदाई अवश्य ही की जानी चाहिए । इसमें शास्त्रीय विधानानुसार सूर्यास्त के समय गंगा / नदी के तटों पर चौदह दीप प्रज्वलित कर पितरों का सिमरन करना चाहिए। इसके बाद दक्षिण दिशा की ओर मुंह कर दीपों को गंगा में प्रवाहित कर पितरों से अपनी जाने अनजाने में हुई भूलों की क्षमा माँगते हुए उनकी विदाई करें।हिन्दु धर्म में पीपल का बहुत ही प्रमुख स्थान है । पीपल में 33 करोड़ देवी देवता का वास माना गया है । भगवान वासुदेव ने भी कहा है कि वृक्षों में मैं पीपल हूँ । पीपल में हमारे पितरों का भी वास माना गया है इसलिए श्राद्ध पक्ष में तो इसका और भी ज्यादा महत्व है ।इसलिए गंगा / नदी तट नहीं होने की स्थिति पर पीपल के वृक्ष के चारों ओर दीप प्रज्वलित करके दक्षिण दिशा की ओर मुंह कर पितरों का सिमरन करते हुए उनकी विदाई करें।वैसे तो पितृ पक्ष के श्राद्ध की महिमा अपार है इसके बारे में ज्यादा कुछ भी कहने की आवश्यकता नहीं है , लेकिन जो भी व्यक्ति अपने दिवंगत माता-पिता, दादी -दादा, परदादा, नाना, नानी आदि का इन 16 श्राद्धों में व्रत उपवास रखकर या श्राद्ध के दिन ब्राह्मण को पूर्ण श्रद्धा से भोजन कराकर दक्षिणा देते हैं,नित्य अपने पूर्वजों का तर्पण करते है उनके घर भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी सदैव ही विराजमान रहती हैं। अर्थात वे सदैव ही सुख, सौभाग्य धन धान्य से परिपूर्ण रहते हैं। अत: इस धरती में सभी व्यक्तियों को इन दिनों में अपने कर्तव्यों का अवश्य अवश्य ही पालन करना चाहिए ।पितृ पक्ष की समाप्ति पर पितरों की विदाईपितृ पक्ष में श्राद्ध करके पितृ अमावस्या के बाद सूर्यास्त के समय पितरों की पूर्ण आदर और श्रद्धा से विदाई अवश्य ही की जानी चाहिए । इसमें शास्त्रीय विधानानुसार सूर्यास्त के समय गंगा / नदी के तटों पर चौदह दीप प्रज्वलित कर पितरों का सिमरन करना चाहिए। इसके बाद दक्षिण दिशा की ओर मुंह कर दीपों को गंगा में प्रवाहित कर पितरों से अपनी जाने अनजाने में हुई भूलों की क्षमा माँगते हुए उनकी विदाई करें।हिन्दु धर्म में पीपल का बहुत ही प्रमुख स्थान है । पीपल में 33 करोड़ देवी देवता का वास माना गया है । भगवान वासुदेव ने भी कहा है कि वृक्षों में मैं पीपल हूँ । पीपल में हमारे पितरों का भी वास माना गया है इसलिए श्राद्ध पक्ष में तो इसका और भी ज्यादा महत्व है ।इसलिए गंगा / नदी तट नहीं होने की स्थिति पर पीपल के वृक्ष के चारों ओर दीप प्रज्वलित करके दक्षिण दिशा की ओर मुंह कर पितरों का सिमरन करते हुए उनकी विदाई करें।वैसे तो पितृ पक्ष के श्राद्ध की महिमा अपार है इसके बारे में ज्यादा कुछ भी कहने की आवश्यकता नहीं है , लेकिन जो भी व्यक्ति अपने दिवंगत माता-पिता, दादी -दादा, परदादा, नाना, नानी आदि का इन 16 श्राद्धों में व्रत उपवास रखकर या श्राद्ध के दिन ब्राह्मण को पूर्ण श्रद्धा से भोजन कराकर दक्षिणा देते हैं,नित्य अपने पूर्वजों का तर्पण करते है उनके घर भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी सदैव ही विराजमान रहती हैं। अर्थात वे सदैव ही सुख, सौभाग्य धन धान्य से परिपूर्ण रहते हैं। अत: इस धरती में सभी व्यक्तियों को इन दिनों में अपने कर्तव्यों का अवश्य अवश्य ही पालन करना चाहिए । By वनिता कासनियां पंजाब ⇐पितृदोष का बहुत महत्वज्योतिष में पितृदोष का बहुत महत्व माना जाता है। प्राचीन ज्योतिष ग्रंथों में पितृदोष सबसे बड़ा दोष माना गया है। इससे पीड़ित व्यक्ति का जीवन अत्यंत कष्टमय हो जाता है। जिस जातक की कुंडली में यह दोष होता है उसे धन अभाव से लेकर मानसिक क्लेश तक का सामना करना पड़ता है। पितृदोष से पीड़ित जातक की उन्नति में बाधा रहती है।आमतौर पर पितृदोष के लिए खर्चीले उपाय बताए जाते हैं लेकिन यदि किसी जातक की कुंडली में पितृ दोष बन रहा है और वह महंगे उपाय करने में असमर्थ है तो भी परेशान होने की कोई बात नहीं। पितृदोष का प्रभाव कम करने के लिए ऐसे कई आसान, सस्ते व सरल उपाय भी हैं जिनसे इसका प्रभाव कम हो सकता है।

पित्तरों को मोक्ष प्रदान करने के लिये पिण्डदान पित्तरों को मोक्ष प्रदान करने के लिये पिण्डदान करना चाहिए, शरीर को पिण्ड का प्रतीक माना गया है, पिण्ड का अर्थ है गोलाकार। पिण्डदान करने के लिये जौ, चावल के आटे को गूंदकर गोलाकार पिण्ड बनाया जाता है या पके हुये चावल को मसलकर भी पिण्ड बनाते है। हिन्दू धर्म में गया, कुरूक्षेत्र, पुष्कर, हरिद्वार, वाराणसी में पिण्डदान का बहुत महत्व बताया गया है वस्तुतः पिण्डदान को मोक्ष प्राप्ति का सरल मार्ग भी कहा गया है। पितृ पक्ष में श्रद्धा एवं भक्ति के साथ नियमपूर्वक अपने समस्त पित्तरों का श्राद्ध करने, तर्पण करने एवं उनके निमित दान-पुण्य करने पर से भी पित्तर प्रसन्न होकर, आशीर्वाद देकर मनुष्य के जीवन के समस्त कष्टों का निवारण करते है।शास्त्रो के अनुसार प्रत्येक अमावस्या को शास्त्रो के अनुसार प्रत्येक अमावस्या को पित्तर अपने घर पर आते है अतः इस दिन हर व्यक्ति को यथाशक्ति उनके नाम से दान करना चाहिएए इस दिन बबूल के पेड़ पर संध्या के समय भोजन रखने से भी पित्तर प्रसन्न होते है। प्रत्येक अमावस्या को गाय को पांच फल भी खिलाने चाहिए।सर्वपितृ दोष अमावस्या का अमोघ ...

दान ना देना आदि पितृ दोष के कारण बनते हैवर्तमान समय में समान्यतः हर मनुष्य कड़ी प्रतिस्पर्धा एवं अति व्यस्तता के कारण अपने माता पिता, बड़े बुजर्गो तथा पित्तरों की चाहे अनचाहे अनदेखा कर देता है। उसका धर्म के विरूद्ध आचरण, गुरू की पत्नी, पुत्री या अन्य स्त्री से अनैतिक सम्बन्ध, माँस मदिरा का सेवन करना, किसी को बेवजह सताना, उधार लेकर धन वापस न करना, दूसरो का धन हड़पना, झूठी गवाही देना, प्रभु, पित्तरों के नाम से दान ना देना आदि पितृ दोष के कारण बनते है। व्यक्ति के मरने के बाद इन कर्मों के कारण दोबारा जन्म लेने पर उसकी कुण्डली में पितृ दोष होता है। पितृ दोष के कारण व्यक्ति को वंशानुगत, मानसिक एवं शारीरिक घोर कष्ट प्राप्त होते है।व्यक्ति की जन्म कुण्डलीव्यक्ति की जन्म कुण्डली में उत्तम ग्रह योग होते है व्यक्ति बहुत परिश्रम भी करता है उसके घर का वास्तु भी ठीक होता है, वह धर्म का पालन भी करता है परन्तु फिर भी वह जीवन में अस्थिरता, परेशानियां, घर में बीमारी, कलह, धन की न्यूनता या खूब धनार्जन के बाद भी अत्याधिक खर्चा, अचानक अपयश, विवाह में विलम्ब आदि से पीड़ित रहता है तो इसका अर्थ है कि वे वर्तमान समय कलयुग के सबसे घातक दोष पितृ दोष से पीड़ित है।सभी धर्मों में पित्तरों को अति महत्वपूर्ण स्थानसंसार के सभी धर्मों में पित्तरों को अति महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है, हिन्दू धर्म में तो पित्तरों को देवतुल्य माना गया है। आप चाहे किसी भी धर्म को मानने वाले हो घर में प्रत्येक नवीन एवं शुभ कार्य में सर्वप्रथम पित्तरों का स्मरण करके उनसे आशीर्वाद लेकर ही कार्य प्रारम्भ करना चाहिए तब उस कार्य में कभी भी किसी प्रकार का अवरोध उत्पन्न बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रमपितृ दोष से पीड़ित व्यक्तिपितृ दोष से पीड़ित व्यक्ति को प्रतिदिन शिव लिंग पर जल चढ़ाकर महामृत्यूंजय का जाप करना चाहिए । माँ काली की नियमित उपासना से भी पितृ दोष में लाभ मिलता है। कौएं तथा पीपल के वृक्ष को पित्तरों का प्रतीक माना गया है अतः मनुष्यों द्वारा रविवार को छोड़कर पीपल के जड़ में प्रतिदिन सादा जल एवं शनिवार को दूध, शहद मिश्रित जल देने से तथा कौओं को नित्य रोटी खिलाने से भी बहुत लाभ मिलता है।पितृ दोष निवारण के लियेपितृ दोष निवारण के लिये यदि कोई व्यक्ति सोमवती अमावस्या के दिन पीपल के पेड़ पर मीठा जलए मिष्ठान एवं जनेऊ अर्पित करते हुये “ऊँ नमो भगवते वासुदेवाएं नमः” मंत्र का जाप करते हुये 108 परिक्रमा करे तत्पश्चात् अपने अपराधों एवं त्रुटियों के लिये क्षमा मांगे तो पितृ दोष से उत्पन्न समस्त समस्याओं का निवारण हो जाता है।

दान ना देना आदि पितृ दोष के कारण बनते है वर्तमान समय में समान्यतः हर मनुष्य कड़ी प्रतिस्पर्धा एवं अति व्यस्तता के कारण अपने माता पिता, बड़े बुजर्गो तथा पित्तरों की चाहे अनचाहे अनदेखा कर देता है। उसका धर्म के विरूद्ध आचरण, गुरू की पत्नी, पुत्री या अन्य स्त्री से अनैतिक सम्बन्ध, माँस मदिरा का सेवन करना, किसी को बेवजह सताना, उधार लेकर धन वापस न करना, दूसरो का धन हड़पना, झूठी गवाही देना, प्रभु, पित्तरों के नाम से दान ना देना आदि पितृ दोष के कारण बनते है। व्यक्ति के मरने के बाद इन कर्मों के कारण दोबारा जन्म लेने पर उसकी कुण्डली में पितृ दोष होता है। पितृ दोष के कारण व्यक्ति को वंशानुगत, मानसिक एवं शारीरिक घोर कष्ट प्राप्त होते है। व्यक्ति की जन्म कुण्डली व्यक्ति की जन्म कुण्डली में उत्तम ग्रह योग होते है व्यक्ति बहुत परिश्रम भी करता है उसके घर का वास्तु भी ठीक होता है, वह धर्म का पालन भी करता है परन्तु फिर भी वह जीवन में अस्थिरता, परेशानियां, घर में बीमारी, कलह, धन की न्यूनता या खूब धनार्जन के बाद भी अत्याधिक खर्चा, अचानक अपयश, विवाह में विलम्ब आदि से पीड़ित रहता है तो इसका अर्थ है कि वे वर...

रामायण के अनुसार रामायण के अनुसार जब मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम वन में अपने पिता का श्राद्ध कर रहे थे तब सीता जी ने श्राद्ध की समस्त सामग्रियां स्वयं अपने हाथ से तैयार की लेकिन जब ब्राहमणों को भोजन करने के लिये आमंत्रित किया गया तो वह कुटी में जल्दी से जा छुपी। बाद में जब भगवान राम ने सीता जी से उनकी परेशानी एवं छुपने का कारण पूछा तो उन्होंने कहा मैंने उन ब्राहमणों में आपके पिता महाराज दशरथ जी के दर्शन किये है, उनके सम्मुख मैं सदैव आभूषणों से सुशोभित रही हूँ वह कैसे मुझे इन कपड़ों में बिना आभूषणों, पसीने मैल से सना हुआ देख पाते।ब्रह्म वैवर्त पुराण और मनुस्मृतिब्रह्म वैवर्त पुराण और मनुस्मृति में ऐसे लोगों की घोर भत्र्सना की गई है जो इस मृत्युलोक में आकर अपने पितरों को भूल जाते हैं और सांसारिक मोहमाया, अज्ञानतावश अथवा संस्कार हीनता के कारण कभी भी अपने दिव्य पितरों को याद नहीं करते है।अपने पितरों का तिथि अनुसार श्राद्ध करने से पितृ प्रसन्न होकर अनुष्ठाता की आयु को बढ़ा देते हैं। साथ ही धन धान्य, पुत्र-पौत्र तथा यश प्रदान करते हैं। श्राद्ध चंद्रिका में कर्म पुराण के माध्यम से वर्णन है कि मनुष्य के लिए श्राद्ध से बढ़कर और कोई कल्याण कर वस्तु है ही नहीं इसलिए हर समझदार मनुष्य को पूर्ण श्रद्धा से श्राद्ध का अनुष्ठान अवश्य ही करना चाहिए। स्कन्द पुराण स्कन्द पुराण के नागर खण्ड में कहा गया है कि श्राद्ध की कोई भी वस्तु व्यर्थ नहीं जाती, अतएव श्राद्ध अवश्य करना चाहिए।पुनीत एवं अनिवार्य कर्त्तव्यश्राद्ध की तिथि में इस बात का भान रहे कि आपके पित्तर किसी ना किसी रूप में स्वयं उपस्थित हैं तथा आपका उनके निमित्त श्रद्धा से किये गये कर्म से वह अवश्य ही संतुष्ट होंगे तथा आपको आशीर्वाद देंगे लेकिन अगर हमने उनके प्रति आभार कृत्तज्ञता एवं श्राद्ध कर्म नहीं किया तो वह फिर पूरे वर्ष निराशा, बेचैनी, निर्बलता एवं दुख का अनुभव करेंगे। शास्त्रों में भी श्राद्ध कर्म को हर हिन्दू का पुनीत एवं अनिवार्य कर्त्तव्य बताया गया है।पितृ तर्पण उसी तिथि को किया जाता हैपितृ तर्पण उसी तिथि को किया जाता है जिस तिथि को पूर्वजों का देहान्त हुआ हो जिन्हें पूर्वजों की मृत्यु की तिथि याद ना हो वह अश्विन कृष्ण अमावस्या यानि सर्वपितृमोक्ष अमावस्या को यह कार्य करते है ताकि पित्तरों को मोक्ष मार्ग दिखाया जा सके। पितृ पक्ष की नौवी तिथि जिसे मातृ नवमी भी कहते है को सुहागन महिलाओं का श्राद्ध एवं तर्पण करना चाहिए।वैसे यदि हो सके तो पूरे पितृ पक्ष में हमें अपने पित्तरों को नमन करते हुये जल में अक्षत, मीठा, चन्दन, जौ, तिल एवं फूल डालकर श्रद्धापूर्वक तर्पण करना चाहिए।कहते है पितृ पक्ष में पित्तरों के निमित उनके गोत्र तथा नाम का उच्चारण करके जो भी वस्तुएं उन्हे अर्पित की जाती है वह उन्हें उनकी योनि के हिसाब से प्राप्त होती है पित्तर योनि पर सूक्ष्म द्रव्य रूप में, देव लोक में होने पर अमृत रूप में, गन्धर्व लोक में होने पर भोग्य रूप में, पशु योनि में तृण रूप में, सर्प योनि में वायु रूप में ,यक्ष योनि में पेय रूप में, दानव योनि में माँस रूप में, प्रेत योनि में रूधिर रूप में, तथा पित्तर मनुष्य योनि में हो तो उन्हे अन्न धन आदि के रूप में प्राप्त होता है।बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम

रामायण के अनुसार रामायण के अनुसार जब मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम वन में अपने पिता का श्राद्ध कर रहे थे तब सीता जी ने श्राद्ध की समस्त सामग्रियां स्वयं अपने हाथ से तैयार की लेकिन जब ब्राहमणों को भोजन करने के लिये आमंत्रित किया गया तो वह कुटी में जल्दी से जा छुपी। बाद में जब भगवान राम ने सीता जी से उनकी परेशानी एवं छुपने का कारण पूछा तो उन्होंने कहा मैंने उन ब्राहमणों में आपके पिता महाराज दशरथ जी के दर्शन किये है, उनके सम्मुख मैं सदैव आभूषणों से सुशोभित रही हूँ वह कैसे मुझे इन कपड़ों में बिना आभूषणों, पसीने मैल से सना हुआ देख पाते। ब्रह्म वैवर्त पुराण और मनुस्मृति ब्रह्म वैवर्त पुराण और मनुस्मृति में ऐसे लोगों की घोर भत्र्सना की गई है जो इस मृत्युलोक में आकर अपने पितरों को भूल जाते हैं और सांसारिक मोहमाया, अज्ञानतावश अथवा संस्कार हीनता के कारण कभी भी अपने दिव्य पितरों को याद नहीं करते है। अपने पितरों का तिथि अनुसार श्राद्ध करने से पितृ प्रसन्न होकर अनुष्ठाता की आयु को बढ़ा देते हैं। साथ ही धन धान्य, पुत्र-पौत्र तथा यश प्रदान करते हैं। श्राद्ध चंद्रिका में कर्म पुराण के माध्यम से वर्...