असली नकली प्रेतावेश की पहचानप्रेत बाधित व्यक्ति में उपर्युक्त लक्षण हैं, तो समझना चाहिए कि सचमुच प्रेत कष्ट से वह पीड़ित है, अन्यथा नहीं।व्यक्ति वास्तव में प्रेतग्रस्त है और उसके माध्यम से बोलने वाला वास्तव में प्रेत है या पालतू प्रेत है, इसे समझने के लिए एक हरा और ताजा नींबू लेकर उसे प्रेतग्रस्त व्यक्ति को दिखाकर चाकू से काटें और देखें अगर पालतू प्रेत होगा तो तत्काल भाग जाएगा, नहीं तो नहीं।पितर दोषों के उपाय:- पितर दोष के लिए बृहस्पति की पूजा, पीपल ब्रहमा की पूजा तीन महीने करें। रोज प्रातः इतवार को छोड़कर दूध जल चीनी मिलाकर पीपल की जड़ में पनी डालें तथा कच्चा सूत लपेटें और जयोति जलाएं। हल्दी जैसे पीले रंग का प्रसाद बांटे, अपने बुजुर्गों की सेवा करें। लीला पुखराज नौ या बारह रत्ती का धारण करें और घर में नारायण बलि का हवन पाठ कराएं।वास्तव में पितर अपने वंशज की श्रद्धा के भूखे होते हैं, उनके द्वारा दी गई वस्तुओं के भूखे नहीं होते। श्राद्ध कर्म का मूल तत्व है, श्रद्धा। श्रद्धा और तप्रण सर्वथा निरर्थक है। कंजूसी करना अनुचित है। श्राद्धकर्ता पितरों के आशीर्वाद से धन धान्य, सुख समृद्धि, संतान और स्वर्ग प्राप्त करता है। शास्त्रों में पितृगण को देवताओं से भी अधिक दयालु और कृपालु बताया गया है। पितृपक्ष में श्राद्ध और तप्रण पाकर वे वर्ष भर तृप्त रहते हैं। जिस घर में पूर्वजों का श्राद्ध होता है वह घर पितरों द्वारा सदैव सुरक्षित रहता है। पितृपक्ष में श्राद्ध न किए जाने से पितर अतृप्त होकर कुपित हो जाते हैं जिससे व्यक्ति को अनेकों प्रकार के कष्ट और दुख उठाने पडते हैं। मृतक के लिए किए गए श्राद्ध का सूक्ष्मांश उस तक अवश्य पहुंचता है। चाहे वह किसी लोक या योनी में हों। श्राद्ध और तप्रण वंशज द्वारा बुजुर्गो पुरखों पूर्वजों को दी गई एक श्रद्धांजलि मात्र है। हमें किसी भी स्थिति में अपने इस आध्यात्मिक कर्तव्य से विमुख होकर उदासीनता नहीं बरतनी चाहिए। पितृपक्ष पुरखों पूर्वजों की स्मृति का विशेष पक्ष है। पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का जो हमारा दायित्व और धर्म है उसके लिए इससे अच्छा मौका नहीं मिल सकता।पितृ पक्ष की समाप्ति पर पितरों की विदाईपितृ पक्ष में श्राद्ध करके पितृ अमावस्या के बाद सूर्यास्त के समय पितरों की पूर्ण आदर और श्रद्धा से विदाई अवश्य ही की जानी चाहिए । इसमें शास्त्रीय विधानानुसार सूर्यास्त के समय गंगा / नदी के तटों पर चौदह दीप प्रज्वलित कर पितरों का सिमरन करना चाहिए। इसके बाद दक्षिण दिशा की ओर मुंह कर दीपों को गंगा में प्रवाहित कर पितरों से अपनी जाने अनजाने में हुई भूलों की क्षमा माँगते हुए उनकी विदाई करें।हिन्दु धर्म में पीपल का बहुत ही प्रमुख स्थान है । पीपल में 33 करोड़ देवी देवता का वास माना गया है । भगवान वासुदेव ने भी कहा है कि वृक्षों में मैं पीपल हूँ । पीपल में हमारे पितरों का भी वास माना गया है इसलिए श्राद्ध पक्ष में तो इसका और भी ज्यादा महत्व है ।बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रमइसलिए गंगा / नदी तट नहीं होने की स्थिति पर पीपल के वृक्ष के चारों ओर दीप प्रज्वलित करके दक्षिण दिशा की ओर मुंह कर पितरों का सिमरन करते हुए उनकी विदाई करें।वैसे तो पितृ पक्ष के श्राद्ध की महिमा अपार है इसके बारे में ज्यादा कुछ भी कहने की आवश्यकता नहीं है , लेकिन जो भी व्यक्ति अपने दिवंगत माता-पिता, दादी -दादा, परदादा, नाना, नानी आदि का इन 16 श्राद्धों में व्रत उपवास रखकर या श्राद्ध के दिन ब्राह्मण को पूर्ण श्रद्धा से भोजन कराकर दक्षिणा देते हैं,नित्य अपने पूर्वजों का तर्पण करते है उनके घर भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी सदैव ही विराजमान रहती हैं। अर्थात वे सदैव ही सुख, सौभाग्य धन धान्य से परिपूर्ण रहते हैं। अत: इस धरती में सभी व्यक्तियों को इन दिनों में अपने कर्तव्यों का अवश्य अवश्य ही पालन करना चाहिए ।
असली नकली प्रेतावेश की पहचान
प्रेत बाधित व्यक्ति में उपर्युक्त लक्षण हैं, तो समझना चाहिए कि सचमुच प्रेत कष्ट से वह पीड़ित है, अन्यथा नहीं।
व्यक्ति वास्तव में प्रेतग्रस्त है और उसके माध्यम से बोलने वाला वास्तव में प्रेत है या पालतू प्रेत है, इसे समझने के लिए एक हरा और ताजा नींबू लेकर उसे प्रेतग्रस्त व्यक्ति को दिखाकर चाकू से काटें और देखें अगर पालतू प्रेत होगा तो तत्काल भाग जाएगा, नहीं तो नहीं।
पितर दोषों के उपाय:- पितर दोष के लिए बृहस्पति की पूजा, पीपल ब्रहमा की पूजा तीन महीने करें। रोज प्रातः इतवार को छोड़कर दूध जल चीनी मिलाकर पीपल की जड़ में पनी डालें तथा कच्चा सूत लपेटें और जयोति जलाएं। हल्दी जैसे पीले रंग का प्रसाद बांटे, अपने बुजुर्गों की सेवा करें। लीला पुखराज नौ या बारह रत्ती का धारण करें और घर में नारायण बलि का हवन पाठ कराएं।
वास्तव में पितर अपने वंशज की श्रद्धा के भूखे होते हैं, उनके द्वारा दी गई वस्तुओं के भूखे नहीं होते। श्राद्ध कर्म का मूल तत्व है, श्रद्धा। श्रद्धा और तप्रण सर्वथा निरर्थक है। कंजूसी करना अनुचित है। श्राद्धकर्ता पितरों के आशीर्वाद से धन धान्य, सुख समृद्धि, संतान और स्वर्ग प्राप्त करता है। शास्त्रों में पितृगण को देवताओं से भी अधिक दयालु और कृपालु बताया गया है। पितृपक्ष में श्राद्ध और तप्रण पाकर वे वर्ष भर तृप्त रहते हैं। जिस घर में पूर्वजों का श्राद्ध होता है वह घर पितरों द्वारा सदैव सुरक्षित रहता है। पितृपक्ष में श्राद्ध न किए जाने से पितर अतृप्त होकर कुपित हो जाते हैं जिससे व्यक्ति को अनेकों प्रकार के कष्ट और दुख उठाने पडते हैं। मृतक के लिए किए गए श्राद्ध का सूक्ष्मांश उस तक अवश्य पहुंचता है। चाहे वह किसी लोक या योनी में हों। श्राद्ध और तप्रण वंशज द्वारा बुजुर्गो पुरखों पूर्वजों को दी गई एक श्रद्धांजलि मात्र है। हमें किसी भी स्थिति में अपने इस आध्यात्मिक कर्तव्य से विमुख होकर उदासीनता नहीं बरतनी चाहिए। पितृपक्ष पुरखों पूर्वजों की स्मृति का विशेष पक्ष है। पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का जो हमारा दायित्व और धर्म है उसके लिए इससे अच्छा मौका नहीं मिल सकता।
व्यक्ति वास्तव में प्रेतग्रस्त है और उसके माध्यम से बोलने वाला वास्तव में प्रेत है या पालतू प्रेत है, इसे समझने के लिए एक हरा और ताजा नींबू लेकर उसे प्रेतग्रस्त व्यक्ति को दिखाकर चाकू से काटें और देखें अगर पालतू प्रेत होगा तो तत्काल भाग जाएगा, नहीं तो नहीं।
पितर दोषों के उपाय:- पितर दोष के लिए बृहस्पति की पूजा, पीपल ब्रहमा की पूजा तीन महीने करें। रोज प्रातः इतवार को छोड़कर दूध जल चीनी मिलाकर पीपल की जड़ में पनी डालें तथा कच्चा सूत लपेटें और जयोति जलाएं। हल्दी जैसे पीले रंग का प्रसाद बांटे, अपने बुजुर्गों की सेवा करें। लीला पुखराज नौ या बारह रत्ती का धारण करें और घर में नारायण बलि का हवन पाठ कराएं।
वास्तव में पितर अपने वंशज की श्रद्धा के भूखे होते हैं, उनके द्वारा दी गई वस्तुओं के भूखे नहीं होते। श्राद्ध कर्म का मूल तत्व है, श्रद्धा। श्रद्धा और तप्रण सर्वथा निरर्थक है। कंजूसी करना अनुचित है। श्राद्धकर्ता पितरों के आशीर्वाद से धन धान्य, सुख समृद्धि, संतान और स्वर्ग प्राप्त करता है। शास्त्रों में पितृगण को देवताओं से भी अधिक दयालु और कृपालु बताया गया है। पितृपक्ष में श्राद्ध और तप्रण पाकर वे वर्ष भर तृप्त रहते हैं। जिस घर में पूर्वजों का श्राद्ध होता है वह घर पितरों द्वारा सदैव सुरक्षित रहता है। पितृपक्ष में श्राद्ध न किए जाने से पितर अतृप्त होकर कुपित हो जाते हैं जिससे व्यक्ति को अनेकों प्रकार के कष्ट और दुख उठाने पडते हैं। मृतक के लिए किए गए श्राद्ध का सूक्ष्मांश उस तक अवश्य पहुंचता है। चाहे वह किसी लोक या योनी में हों। श्राद्ध और तप्रण वंशज द्वारा बुजुर्गो पुरखों पूर्वजों को दी गई एक श्रद्धांजलि मात्र है। हमें किसी भी स्थिति में अपने इस आध्यात्मिक कर्तव्य से विमुख होकर उदासीनता नहीं बरतनी चाहिए। पितृपक्ष पुरखों पूर्वजों की स्मृति का विशेष पक्ष है। पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का जो हमारा दायित्व और धर्म है उसके लिए इससे अच्छा मौका नहीं मिल सकता।
पितृ पक्ष की समाप्ति पर पितरों की विदाई
पितृ पक्ष में श्राद्ध करके पितृ अमावस्या के बाद सूर्यास्त के समय पितरों की पूर्ण आदर और श्रद्धा से विदाई अवश्य ही की जानी चाहिए । इसमें शास्त्रीय विधानानुसार सूर्यास्त के समय गंगा / नदी के तटों पर चौदह दीप प्रज्वलित कर पितरों का सिमरन करना चाहिए। इसके बाद दक्षिण दिशा की ओर मुंह कर दीपों को गंगा में प्रवाहित कर पितरों से अपनी जाने अनजाने में हुई भूलों की क्षमा माँगते हुए उनकी विदाई करें।
हिन्दु धर्म में पीपल का बहुत ही प्रमुख स्थान है । पीपल में 33 करोड़ देवी देवता का वास माना गया है । भगवान वासुदेव ने भी कहा है कि वृक्षों में मैं पीपल हूँ । पीपल में हमारे पितरों का भी वास माना गया है इसलिए श्राद्ध पक्ष में तो इसका और भी ज्यादा महत्व है ।
हिन्दु धर्म में पीपल का बहुत ही प्रमुख स्थान है । पीपल में 33 करोड़ देवी देवता का वास माना गया है । भगवान वासुदेव ने भी कहा है कि वृक्षों में मैं पीपल हूँ । पीपल में हमारे पितरों का भी वास माना गया है इसलिए श्राद्ध पक्ष में तो इसका और भी ज्यादा महत्व है ।
बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम
इसलिए गंगा / नदी तट नहीं होने की स्थिति पर पीपल के वृक्ष के चारों ओर दीप प्रज्वलित करके दक्षिण दिशा की ओर मुंह कर पितरों का सिमरन करते हुए उनकी विदाई करें।
वैसे तो पितृ पक्ष के श्राद्ध की महिमा अपार है इसके बारे में ज्यादा कुछ भी कहने की आवश्यकता नहीं है , लेकिन जो भी व्यक्ति अपने दिवंगत माता-पिता, दादी -दादा, परदादा, नाना, नानी आदि का इन 16 श्राद्धों में व्रत उपवास रखकर या श्राद्ध के दिन ब्राह्मण को पूर्ण श्रद्धा से भोजन कराकर दक्षिणा देते हैं,नित्य अपने पूर्वजों का तर्पण करते है उनके घर भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी सदैव ही विराजमान रहती हैं। अर्थात वे सदैव ही सुख, सौभाग्य धन धान्य से परिपूर्ण रहते हैं। अत: इस धरती में सभी व्यक्तियों को इन दिनों में अपने कर्तव्यों का अवश्य अवश्य ही पालन करना चाहिए ।
इसलिए गंगा / नदी तट नहीं होने की स्थिति पर पीपल के वृक्ष के चारों ओर दीप प्रज्वलित करके दक्षिण दिशा की ओर मुंह कर पितरों का सिमरन करते हुए उनकी विदाई करें।
वैसे तो पितृ पक्ष के श्राद्ध की महिमा अपार है इसके बारे में ज्यादा कुछ भी कहने की आवश्यकता नहीं है , लेकिन जो भी व्यक्ति अपने दिवंगत माता-पिता, दादी -दादा, परदादा, नाना, नानी आदि का इन 16 श्राद्धों में व्रत उपवास रखकर या श्राद्ध के दिन ब्राह्मण को पूर्ण श्रद्धा से भोजन कराकर दक्षिणा देते हैं,नित्य अपने पूर्वजों का तर्पण करते है उनके घर भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी सदैव ही विराजमान रहती हैं। अर्थात वे सदैव ही सुख, सौभाग्य धन धान्य से परिपूर्ण रहते हैं। अत: इस धरती में सभी व्यक्तियों को इन दिनों में अपने कर्तव्यों का अवश्य अवश्य ही पालन करना चाहिए ।
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