रामायण के अनुसार रामायण के अनुसार जब मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम वन में अपने पिता का श्राद्ध कर रहे थे तब सीता जी ने श्राद्ध की समस्त सामग्रियां स्वयं अपने हाथ से तैयार की लेकिन जब ब्राहमणों को भोजन करने के लिये आमंत्रित किया गया तो वह कुटी में जल्दी से जा छुपी। बाद में जब भगवान राम ने सीता जी से उनकी परेशानी एवं छुपने का कारण पूछा तो उन्होंने कहा मैंने उन ब्राहमणों में आपके पिता महाराज दशरथ जी के दर्शन किये है, उनके सम्मुख मैं सदैव आभूषणों से सुशोभित रही हूँ वह कैसे मुझे इन कपड़ों में बिना आभूषणों, पसीने मैल से सना हुआ देख पाते।ब्रह्म वैवर्त पुराण और मनुस्मृतिब्रह्म वैवर्त पुराण और मनुस्मृति में ऐसे लोगों की घोर भत्र्सना की गई है जो इस मृत्युलोक में आकर अपने पितरों को भूल जाते हैं और सांसारिक मोहमाया, अज्ञानतावश अथवा संस्कार हीनता के कारण कभी भी अपने दिव्य पितरों को याद नहीं करते है।अपने पितरों का तिथि अनुसार श्राद्ध करने से पितृ प्रसन्न होकर अनुष्ठाता की आयु को बढ़ा देते हैं। साथ ही धन धान्य, पुत्र-पौत्र तथा यश प्रदान करते हैं। श्राद्ध चंद्रिका में कर्म पुराण के माध्यम से वर्णन है कि मनुष्य के लिए श्राद्ध से बढ़कर और कोई कल्याण कर वस्तु है ही नहीं इसलिए हर समझदार मनुष्य को पूर्ण श्रद्धा से श्राद्ध का अनुष्ठान अवश्य ही करना चाहिए। स्कन्द पुराण स्कन्द पुराण के नागर खण्ड में कहा गया है कि श्राद्ध की कोई भी वस्तु व्यर्थ नहीं जाती, अतएव श्राद्ध अवश्य करना चाहिए।पुनीत एवं अनिवार्य कर्त्तव्यश्राद्ध की तिथि में इस बात का भान रहे कि आपके पित्तर किसी ना किसी रूप में स्वयं उपस्थित हैं तथा आपका उनके निमित्त श्रद्धा से किये गये कर्म से वह अवश्य ही संतुष्ट होंगे तथा आपको आशीर्वाद देंगे लेकिन अगर हमने उनके प्रति आभार कृत्तज्ञता एवं श्राद्ध कर्म नहीं किया तो वह फिर पूरे वर्ष निराशा, बेचैनी, निर्बलता एवं दुख का अनुभव करेंगे। शास्त्रों में भी श्राद्ध कर्म को हर हिन्दू का पुनीत एवं अनिवार्य कर्त्तव्य बताया गया है।पितृ तर्पण उसी तिथि को किया जाता हैपितृ तर्पण उसी तिथि को किया जाता है जिस तिथि को पूर्वजों का देहान्त हुआ हो जिन्हें पूर्वजों की मृत्यु की तिथि याद ना हो वह अश्विन कृष्ण अमावस्या यानि सर्वपितृमोक्ष अमावस्या को यह कार्य करते है ताकि पित्तरों को मोक्ष मार्ग दिखाया जा सके। पितृ पक्ष की नौवी तिथि जिसे मातृ नवमी भी कहते है को सुहागन महिलाओं का श्राद्ध एवं तर्पण करना चाहिए।वैसे यदि हो सके तो पूरे पितृ पक्ष में हमें अपने पित्तरों को नमन करते हुये जल में अक्षत, मीठा, चन्दन, जौ, तिल एवं फूल डालकर श्रद्धापूर्वक तर्पण करना चाहिए।कहते है पितृ पक्ष में पित्तरों के निमित उनके गोत्र तथा नाम का उच्चारण करके जो भी वस्तुएं उन्हे अर्पित की जाती है वह उन्हें उनकी योनि के हिसाब से प्राप्त होती है पित्तर योनि पर सूक्ष्म द्रव्य रूप में, देव लोक में होने पर अमृत रूप में, गन्धर्व लोक में होने पर भोग्य रूप में, पशु योनि में तृण रूप में, सर्प योनि में वायु रूप में ,यक्ष योनि में पेय रूप में, दानव योनि में माँस रूप में, प्रेत योनि में रूधिर रूप में, तथा पित्तर मनुष्य योनि में हो तो उन्हे अन्न धन आदि के रूप में प्राप्त होता है।बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम
रामायण के अनुसार रामायण के अनुसार जब मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम वन में अपने पिता का श्राद्ध कर रहे थे तब सीता जी ने श्राद्ध की समस्त सामग्रियां स्वयं अपने हाथ से तैयार की लेकिन जब ब्राहमणों को भोजन करने के लिये आमंत्रित किया गया तो वह कुटी में जल्दी से जा छुपी। बाद में जब भगवान राम ने सीता जी से उनकी परेशानी एवं छुपने का कारण पूछा तो उन्होंने कहा मैंने उन ब्राहमणों में आपके पिता महाराज दशरथ जी के दर्शन किये है, उनके सम्मुख मैं सदैव आभूषणों से सुशोभित रही हूँ वह कैसे मुझे इन कपड़ों में बिना आभूषणों, पसीने मैल से सना हुआ देख पाते। ब्रह्म वैवर्त पुराण और मनुस्मृति ब्रह्म वैवर्त पुराण और मनुस्मृति में ऐसे लोगों की घोर भत्र्सना की गई है जो इस मृत्युलोक में आकर अपने पितरों को भूल जाते हैं और सांसारिक मोहमाया, अज्ञानतावश अथवा संस्कार हीनता के कारण कभी भी अपने दिव्य पितरों को याद नहीं करते है। अपने पितरों का तिथि अनुसार श्राद्ध करने से पितृ प्रसन्न होकर अनुष्ठाता की आयु को बढ़ा देते हैं। साथ ही धन धान्य, पुत्र-पौत्र तथा यश प्रदान करते हैं। श्राद्ध चंद्रिका में कर्म पुराण के माध्यम से वर्...