Skip to main content

Posts

रामायण के अनुसार रामायण के अनुसार जब मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम वन में अपने पिता का श्राद्ध कर रहे थे तब सीता जी ने श्राद्ध की समस्त सामग्रियां स्वयं अपने हाथ से तैयार की लेकिन जब ब्राहमणों को भोजन करने के लिये आमंत्रित किया गया तो वह कुटी में जल्दी से जा छुपी। बाद में जब भगवान राम ने सीता जी से उनकी परेशानी एवं छुपने का कारण पूछा तो उन्होंने कहा मैंने उन ब्राहमणों में आपके पिता महाराज दशरथ जी के दर्शन किये है, उनके सम्मुख मैं सदैव आभूषणों से सुशोभित रही हूँ वह कैसे मुझे इन कपड़ों में बिना आभूषणों, पसीने मैल से सना हुआ देख पाते।ब्रह्म वैवर्त पुराण और मनुस्मृतिब्रह्म वैवर्त पुराण और मनुस्मृति में ऐसे लोगों की घोर भत्र्सना की गई है जो इस मृत्युलोक में आकर अपने पितरों को भूल जाते हैं और सांसारिक मोहमाया, अज्ञानतावश अथवा संस्कार हीनता के कारण कभी भी अपने दिव्य पितरों को याद नहीं करते है।अपने पितरों का तिथि अनुसार श्राद्ध करने से पितृ प्रसन्न होकर अनुष्ठाता की आयु को बढ़ा देते हैं। साथ ही धन धान्य, पुत्र-पौत्र तथा यश प्रदान करते हैं। श्राद्ध चंद्रिका में कर्म पुराण के माध्यम से वर्णन है कि मनुष्य के लिए श्राद्ध से बढ़कर और कोई कल्याण कर वस्तु है ही नहीं इसलिए हर समझदार मनुष्य को पूर्ण श्रद्धा से श्राद्ध का अनुष्ठान अवश्य ही करना चाहिए। स्कन्द पुराण स्कन्द पुराण के नागर खण्ड में कहा गया है कि श्राद्ध की कोई भी वस्तु व्यर्थ नहीं जाती, अतएव श्राद्ध अवश्य करना चाहिए।पुनीत एवं अनिवार्य कर्त्तव्यश्राद्ध की तिथि में इस बात का भान रहे कि आपके पित्तर किसी ना किसी रूप में स्वयं उपस्थित हैं तथा आपका उनके निमित्त श्रद्धा से किये गये कर्म से वह अवश्य ही संतुष्ट होंगे तथा आपको आशीर्वाद देंगे लेकिन अगर हमने उनके प्रति आभार कृत्तज्ञता एवं श्राद्ध कर्म नहीं किया तो वह फिर पूरे वर्ष निराशा, बेचैनी, निर्बलता एवं दुख का अनुभव करेंगे। शास्त्रों में भी श्राद्ध कर्म को हर हिन्दू का पुनीत एवं अनिवार्य कर्त्तव्य बताया गया है।पितृ तर्पण उसी तिथि को किया जाता हैपितृ तर्पण उसी तिथि को किया जाता है जिस तिथि को पूर्वजों का देहान्त हुआ हो जिन्हें पूर्वजों की मृत्यु की तिथि याद ना हो वह अश्विन कृष्ण अमावस्या यानि सर्वपितृमोक्ष अमावस्या को यह कार्य करते है ताकि पित्तरों को मोक्ष मार्ग दिखाया जा सके। पितृ पक्ष की नौवी तिथि जिसे मातृ नवमी भी कहते है को सुहागन महिलाओं का श्राद्ध एवं तर्पण करना चाहिए।वैसे यदि हो सके तो पूरे पितृ पक्ष में हमें अपने पित्तरों को नमन करते हुये जल में अक्षत, मीठा, चन्दन, जौ, तिल एवं फूल डालकर श्रद्धापूर्वक तर्पण करना चाहिए।कहते है पितृ पक्ष में पित्तरों के निमित उनके गोत्र तथा नाम का उच्चारण करके जो भी वस्तुएं उन्हे अर्पित की जाती है वह उन्हें उनकी योनि के हिसाब से प्राप्त होती है पित्तर योनि पर सूक्ष्म द्रव्य रूप में, देव लोक में होने पर अमृत रूप में, गन्धर्व लोक में होने पर भोग्य रूप में, पशु योनि में तृण रूप में, सर्प योनि में वायु रूप में ,यक्ष योनि में पेय रूप में, दानव योनि में माँस रूप में, प्रेत योनि में रूधिर रूप में, तथा पित्तर मनुष्य योनि में हो तो उन्हे अन्न धन आदि के रूप में प्राप्त होता है।बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम

रामायण के अनुसार रामायण के अनुसार जब मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम वन में अपने पिता का श्राद्ध कर रहे थे तब सीता जी ने श्राद्ध की समस्त सामग्रियां स्वयं अपने हाथ से तैयार की लेकिन जब ब्राहमणों को भोजन करने के लिये आमंत्रित किया गया तो वह कुटी में जल्दी से जा छुपी। बाद में जब भगवान राम ने सीता जी से उनकी परेशानी एवं छुपने का कारण पूछा तो उन्होंने कहा मैंने उन ब्राहमणों में आपके पिता महाराज दशरथ जी के दर्शन किये है, उनके सम्मुख मैं सदैव आभूषणों से सुशोभित रही हूँ वह कैसे मुझे इन कपड़ों में बिना आभूषणों, पसीने मैल से सना हुआ देख पाते। ब्रह्म वैवर्त पुराण और मनुस्मृति ब्रह्म वैवर्त पुराण और मनुस्मृति में ऐसे लोगों की घोर भत्र्सना की गई है जो इस मृत्युलोक में आकर अपने पितरों को भूल जाते हैं और सांसारिक मोहमाया, अज्ञानतावश अथवा संस्कार हीनता के कारण कभी भी अपने दिव्य पितरों को याद नहीं करते है। अपने पितरों का तिथि अनुसार श्राद्ध करने से पितृ प्रसन्न होकर अनुष्ठाता की आयु को बढ़ा देते हैं। साथ ही धन धान्य, पुत्र-पौत्र तथा यश प्रदान करते हैं। श्राद्ध चंद्रिका में कर्म पुराण के माध्यम से वर्...

असली नकली प्रेतावेश की पहचानप्रेत बाधित व्यक्ति में उपर्युक्त लक्षण हैं, तो समझना चाहिए कि सचमुच प्रेत कष्ट से वह पीड़ित है, अन्यथा नहीं।व्यक्ति वास्तव में प्रेतग्रस्त है और उसके माध्यम से बोलने वाला वास्तव में प्रेत है या पालतू प्रेत है, इसे समझने के लिए एक हरा और ताजा नींबू लेकर उसे प्रेतग्रस्त व्यक्ति को दिखाकर चाकू से काटें और देखें अगर पालतू प्रेत होगा तो तत्काल भाग जाएगा, नहीं तो नहीं।पितर दोषों के उपाय:- पितर दोष के लिए बृहस्पति की पूजा, पीपल ब्रहमा की पूजा तीन महीने करें। रोज प्रातः इतवार को छोड़कर दूध जल चीनी मिलाकर पीपल की जड़ में पनी डालें तथा कच्चा सूत लपेटें और जयोति जलाएं। हल्दी जैसे पीले रंग का प्रसाद बांटे, अपने बुजुर्गों की सेवा करें। लीला पुखराज नौ या बारह रत्ती का धारण करें और घर में नारायण बलि का हवन पाठ कराएं।वास्तव में पितर अपने वंशज की श्रद्धा के भूखे होते हैं, उनके द्वारा दी गई वस्तुओं के भूखे नहीं होते। श्राद्ध कर्म का मूल तत्व है, श्रद्धा। श्रद्धा और तप्रण सर्वथा निरर्थक है। कंजूसी करना अनुचित है। श्राद्धकर्ता पितरों के आशीर्वाद से धन धान्य, सुख समृद्धि, संतान और स्वर्ग प्राप्त करता है। शास्त्रों में पितृगण को देवताओं से भी अधिक दयालु और कृपालु बताया गया है। पितृपक्ष में श्राद्ध और तप्रण पाकर वे वर्ष भर तृप्त रहते हैं। जिस घर में पूर्वजों का श्राद्ध होता है वह घर पितरों द्वारा सदैव सुरक्षित रहता है। पितृपक्ष में श्राद्ध न किए जाने से पितर अतृप्त होकर कुपित हो जाते हैं जिससे व्यक्ति को अनेकों प्रकार के कष्ट और दुख उठाने पडते हैं। मृतक के लिए किए गए श्राद्ध का सूक्ष्मांश उस तक अवश्य पहुंचता है। चाहे वह किसी लोक या योनी में हों। श्राद्ध और तप्रण वंशज द्वारा बुजुर्गो पुरखों पूर्वजों को दी गई एक श्रद्धांजलि मात्र है। हमें किसी भी स्थिति में अपने इस आध्यात्मिक कर्तव्य से विमुख होकर उदासीनता नहीं बरतनी चाहिए। पितृपक्ष पुरखों पूर्वजों की स्मृति का विशेष पक्ष है। पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का जो हमारा दायित्व और धर्म है उसके लिए इससे अच्छा मौका नहीं मिल सकता।पितृ पक्ष की समाप्ति पर पितरों की विदाईपितृ पक्ष में श्राद्ध करके पितृ अमावस्या के बाद सूर्यास्त के समय पितरों की पूर्ण आदर और श्रद्धा से विदाई अवश्य ही की जानी चाहिए । इसमें शास्त्रीय विधानानुसार सूर्यास्त के समय गंगा / नदी के तटों पर चौदह दीप प्रज्वलित कर पितरों का सिमरन करना चाहिए। इसके बाद दक्षिण दिशा की ओर मुंह कर दीपों को गंगा में प्रवाहित कर पितरों से अपनी जाने अनजाने में हुई भूलों की क्षमा माँगते हुए उनकी विदाई करें।हिन्दु धर्म में पीपल का बहुत ही प्रमुख स्थान है । पीपल में 33 करोड़ देवी देवता का वास माना गया है । भगवान वासुदेव ने भी कहा है कि वृक्षों में मैं पीपल हूँ । पीपल में हमारे पितरों का भी वास माना गया है इसलिए श्राद्ध पक्ष में तो इसका और भी ज्यादा महत्व है ।बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रमइसलिए गंगा / नदी तट नहीं होने की स्थिति पर पीपल के वृक्ष के चारों ओर दीप प्रज्वलित करके दक्षिण दिशा की ओर मुंह कर पितरों का सिमरन करते हुए उनकी विदाई करें।वैसे तो पितृ पक्ष के श्राद्ध की महिमा अपार है इसके बारे में ज्यादा कुछ भी कहने की आवश्यकता नहीं है , लेकिन जो भी व्यक्ति अपने दिवंगत माता-पिता, दादी -दादा, परदादा, नाना, नानी आदि का इन 16 श्राद्धों में व्रत उपवास रखकर या श्राद्ध के दिन ब्राह्मण को पूर्ण श्रद्धा से भोजन कराकर दक्षिणा देते हैं,नित्य अपने पूर्वजों का तर्पण करते है उनके घर भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी सदैव ही विराजमान रहती हैं। अर्थात वे सदैव ही सुख, सौभाग्य धन धान्य से परिपूर्ण रहते हैं। अत: इस धरती में सभी व्यक्तियों को इन दिनों में अपने कर्तव्यों का अवश्य अवश्य ही पालन करना चाहिए ।

असली नकली प्रेतावेश की पहचान प्रेत बाधित व्यक्ति में उपर्युक्त लक्षण हैं, तो समझना चाहिए कि सचमुच प्रेत कष्ट से वह पीड़ित है, अन्यथा नहीं। व्यक्ति वास्तव में प्रेतग्रस्त है और उसके माध्यम से बोलने वाला वास्तव में प्रेत है या पालतू प्रेत है, इसे समझने के लिए एक हरा और ताजा नींबू लेकर उसे प्रेतग्रस्त व्यक्ति को दिखाकर चाकू से काटें और देखें अगर पालतू प्रेत होगा तो तत्काल भाग जाएगा, नहीं तो नहीं। पितर दोषों के उपाय:-  पितर दोष के लिए बृहस्पति की पूजा, पीपल ब्रहमा की पूजा तीन महीने करें। रोज प्रातः इतवार को छोड़कर दूध जल चीनी मिलाकर पीपल की जड़ में पनी डालें तथा कच्चा सूत लपेटें और जयोति जलाएं। हल्दी जैसे पीले रंग का प्रसाद बांटे, अपने बुजुर्गों की सेवा करें। लीला पुखराज नौ या बारह रत्ती का धारण करें और घर में नारायण बलि का हवन पाठ कराएं। वास्तव में पितर अपने वंशज की श्रद्धा के भूखे होते हैं, उनके द्वारा दी गई वस्तुओं के भूखे नहीं होते। श्राद्ध कर्म का मूल तत्व है, श्रद्धा। श्रद्धा और तप्रण सर्वथा निरर्थक है। कंजूसी करना अनुचित है। श्राद्धकर्ता पितरों के आशीर्वाद से धन धान्य, सुख समृद्धि,...

असली नकली प्रेतावेश की पहचान प्रेत बाधित व्यक्ति में उपर्युक्त लक्षण हैं, तो समझना चाहिए कि सचमुच प्रेत कष्ट से वह पीड़ित है, अन्यथा नहीं। व्यक्ति वास्तव में प्रेतग्रस्त है और उसके माध्यम से बोलने वाला वास्तव में प्रेत है या पालतू प्रेत है, इसे समझने के लिए एक हरा और ताजा नींबू लेकर उसे प्रेतग्रस्त व्यक्ति को दिखाकर चाकू से काटें और देखें अगर पालतू प्रेत होगा तो तत्काल भाग जाएगा, नहीं तो नहीं। पितर दोषों के उपाय:- पितर दोष के लिए बृहस्पति की पूजा, पीपल ब्रहमा की पूजा तीन महीने करें। रोज प्रातः इतवार को छोड़कर दूध जल चीनी मिलाकर पीपल की जड़ में पनी डालें तथा कच्चा सूत लपेटें और जयोति जलाएं। हल्दी जैसे पीले रंग का प्रसाद बांटे, अपने बुजुर्गों की सेवा करें। लीला पुखराज नौ या बारह रत्ती का धारण करें और घर में नारायण बलि का हवन पाठ कराएं। वास्तव में पितर अपने वंशज की श्रद्धा के भूखे होते हैं, उनके द्वारा दी गई वस्तुओं के भूखे नहीं होते। श्राद्ध कर्म का मूल तत्व है, श्रद्धा। श्रद्धा और तप्रण सर्वथा निरर्थक है। कंजूसी करना अनुचित है। श्राद्धकर्ता पितरों के आशीर्वाद से धन धान्य, सुख समृद्धि, संतान और स्वर्ग प्राप्त करता है। शास्त्रों में पितृगण को देवताओं से भी अधिक दयालु और कृपालु बताया गया है। पितृपक्ष में श्राद्ध और तप्रण पाकर वे वर्ष भर तृप्त रहते हैं। जिस घर में पूर्वजों का श्राद्ध होता है वह घर पितरों द्वारा सदैव सुरक्षित रहता है। पितृपक्ष में श्राद्ध न किए जाने से पितर अतृप्त होकर कुपित हो जाते हैं जिससे व्यक्ति को अनेकों प्रकार के कष्ट और दुख उठाने पडते हैं। मृतक के लिए किए गए श्राद्ध का सूक्ष्मांश उस तक अवश्य पहुंचता है। चाहे वह किसी लोक या योनी में हों। श्राद्ध और तप्रण वंशज द्वारा बुजुर्गो पुरखों पूर्वजों को दी गई एक श्रद्धांजलि मात्र है। हमें किसी भी स्थिति में अपने इस आध्यात्मिक कर्तव्य से विमुख होकर उदासीनता नहीं बरतनी चाहिए। पितृपक्ष पुरखों पूर्वजों की स्मृति का विशेष पक्ष है। पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का जो हमारा दायित्व और धर्म है उसके लिए इससे अच्छा मौका नहीं मिल सकता। पितृ पक्ष की समाप्ति पर पितरों की विद- पितृ पक्ष में श्राद्ध करके पितृ अमावस्या के बाद सूर्यास्त के समय पितरों की पूर्ण आदर और श्रद्धा से विदाई अवश्य ही की जानी चाहिए । इसमें शास्त्रीय विधानानुसार सूर्यास्त के समय गंगा / नदी के तटों पर चौदह दीप प्रज्वलित कर पितरों का सिमरन करना चाहिए। इसके बाद दक्षिण दिशा की ओर मुंह कर दीपों को गंगा में प्रवाहित कर पितरों से अपनी जाने अनजाने में हुई भूलों की क्षमा माँगते हुए उनकी विदाई करें। हिन्दु धर्म में पीपल का बहुत ही प्रमुख स्थान है । पीपल में 33 करोड़ देवी देवता का वास माना गया है । भगवान वासुदेव ने भी कहा है कि वृक्षों में मैं पीपल हूँ । पीपल में हमारे पितरों का भी वास माना गया है इसलिए श्राद्ध पक्ष में तो इसका और भी ज्यादा महत्व है । बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम इसलिए गंगा / नदी तट नहीं होने की स्थिति पर पीपल के वृक्ष के चारों ओर दीप प्रज्वलित करके दक्षिण दिशा की ओर मुंह कर पितरों का सिमरन करते हुए उनकी विदाई करें। वैसे तो पितृ पक्ष के श्राद्ध की महिमा अपार है इसके बारे में ज्यादा कुछ भी कहने की आवश्यकता नहीं है , लेकिन जो भी व्यक्ति अपने दिवंगत माता-पिता, दादी -दादा, परदादा, नाना, नानी आदि का इन 16 श्राद्धों में व्रत उपवास रखकर या श्राद्ध के दिन ब्राह्मण को पूर्ण श्रद्धा से भोजन कराकर दक्षिणा देते हैं,नित्य अपने पूर्वजों का तर्पण करते है उनके घर भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी सदैव ही विराजमान रहती हैं। अर्थात वे सदैव ही सुख, सौभाग्य धन धान्य से परिपूर्ण रहते हैं। अत: इस धरती में सभी व्यक्तियों को इन दिनों में अपने कर्तव्यों का अवश्य अवश्य ही पालन करना चाहिए ।

  असली नकली प्रेतावेश की पहचान प्रेत बाधित व्यक्ति में उपर्युक्त लक्षण हैं, तो समझना चाहिए कि सचमुच प्रेत कष्ट से वह पीड़ित है, अन्यथा नहीं। व्यक्ति वास्तव में प्रेतग्रस्त है और उसके माध्यम से बोलने वाला वास्तव में प्रेत है या पालतू प्रेत है, इसे समझने के लिए एक हरा और ताजा नींबू लेकर उसे प्रेतग्रस्त व्यक्ति को दिखाकर चाकू से काटें और देखें अगर पालतू प्रेत होगा तो तत्काल भाग जाएगा, नहीं तो नहीं। पितर दोषों के उपाय:-  पितर दोष के लिए बृहस्पति की पूजा, पीपल ब्रहमा की पूजा तीन महीने करें। रोज प्रातः इतवार को छोड़कर दूध जल चीनी मिलाकर पीपल की जड़ में पनी डालें तथा कच्चा सूत लपेटें और जयोति जलाएं। हल्दी जैसे पीले रंग का प्रसाद बांटे, अपने बुजुर्गों की सेवा करें। लीला पुखराज नौ या बारह रत्ती का धारण करें और घर में नारायण बलि का हवन पाठ कराएं। वास्तव में पितर अपने वंशज की श्रद्धा के भूखे होते हैं, उनके द्वारा दी गई वस्तुओं के भूखे नहीं होते। श्राद्ध कर्म का मूल तत्व है, श्रद्धा। श्रद्धा और तप्रण सर्वथा निरर्थक है। कंजूसी करना अनुचित है। श्राद्धकर्ता पितरों के आशीर्वाद से धन धान्य, सुख स...

असली नकली प्रेतावेश की पहचानप्रेत बाधित व्यक्ति में उपर्युक्त लक्षण हैं, तो समझना चाहिए कि सचमुच प्रेत कष्ट से वह पीड़ित है, अन्यथा नहीं।व्यक्ति वास्तव में प्रेतग्रस्त है और उसके माध्यम से बोलने वाला वास्तव में प्रेत है या पालतू प्रेत है, इसे समझने के लिए एक हरा और ताजा नींबू लेकर उसे प्रेतग्रस्त व्यक्ति को दिखाकर चाकू से काटें और देखें अगर पालतू प्रेत होगा तो तत्काल भाग जाएगा, नहीं तो नहीं।पितर दोषों के उपाय:- पितर दोष के लिए बृहस्पति की पूजा, पीपल ब्रहमा की पूजा तीन महीने करें। रोज प्रातः इतवार को छोड़कर दूध जल चीनी मिलाकर पीपल की जड़ में पनी डालें तथा कच्चा सूत लपेटें और जयोति जलाएं। हल्दी जैसे पीले रंग का प्रसाद बांटे, अपने बुजुर्गों की सेवा करें। लीला पुखराज नौ या बारह रत्ती का धारण करें और घर में नारायण बलि का हवन पाठ कराएं।वास्तव में पितर अपने वंशज की श्रद्धा के भूखे होते हैं, उनके द्वारा दी गई वस्तुओं के भूखे नहीं होते। श्राद्ध कर्म का मूल तत्व है, श्रद्धा। श्रद्धा और तप्रण सर्वथा निरर्थक है। कंजूसी करना अनुचित है। श्राद्धकर्ता पितरों के आशीर्वाद से धन धान्य, सुख समृद्धि, संतान और स्वर्ग प्राप्त करता है। शास्त्रों में पितृगण को देवताओं से भी अधिक दयालु और कृपालु बताया गया है। पितृपक्ष में श्राद्ध और तप्रण पाकर वे वर्ष भर तृप्त रहते हैं। जिस घर में पूर्वजों का श्राद्ध होता है वह घर पितरों द्वारा सदैव सुरक्षित रहता है। पितृपक्ष में श्राद्ध न किए जाने से पितर अतृप्त होकर कुपित हो जाते हैं जिससे व्यक्ति को अनेकों प्रकार के कष्ट और दुख उठाने पडते हैं। मृतक के लिए किए गए श्राद्ध का सूक्ष्मांश उस तक अवश्य पहुंचता है। चाहे वह किसी लोक या योनी में हों। श्राद्ध और तप्रण वंशज द्वारा बुजुर्गो पुरखों पूर्वजों को दी गई एक श्रद्धांजलि मात्र है। हमें किसी भी स्थिति में अपने इस आध्यात्मिक कर्तव्य से विमुख होकर उदासीनता नहीं बरतनी चाहिए। पितृपक्ष पुरखों पूर्वजों की स्मृति का विशेष पक्ष है। पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का जो हमारा दायित्व और धर्म है उसके लिए इससे अच्छा मौका नहीं मिल सकता।पितृ पक्ष की समाप्ति पर पितरों की विदाईपितृ पक्ष में श्राद्ध करके पितृ अमावस्या के बाद सूर्यास्त के समय पितरों की पूर्ण आदर और श्रद्धा से विदाई अवश्य ही की जानी चाहिए । इसमें शास्त्रीय विधानानुसार सूर्यास्त के समय गंगा / नदी के तटों पर चौदह दीप प्रज्वलित कर पितरों का सिमरन करना चाहिए। इसके बाद दक्षिण दिशा की ओर मुंह कर दीपों को गंगा में प्रवाहित कर पितरों से अपनी जाने अनजाने में हुई भूलों की क्षमा माँगते हुए उनकी विदाई करें।हिन्दु धर्म में पीपल का बहुत ही प्रमुख स्थान है । पीपल में 33 करोड़ देवी देवता का वास माना गया है । भगवान वासुदेव ने भी कहा है कि वृक्षों में मैं पीपल हूँ । पीपल में हमारे पितरों का भी वास माना गया है इसलिए श्राद्ध पक्ष में तो इसका और भी ज्यादा महत्व है ।बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रमइसलिए गंगा / नदी तट नहीं होने की स्थिति पर पीपल के वृक्ष के चारों ओर दीप प्रज्वलित करके दक्षिण दिशा की ओर मुंह कर पितरों का सिमरन करते हुए उनकी विदाई करें।वैसे तो पितृ पक्ष के श्राद्ध की महिमा अपार है इसके बारे में ज्यादा कुछ भी कहने की आवश्यकता नहीं है , लेकिन जो भी व्यक्ति अपने दिवंगत माता-पिता, दादी -दादा, परदादा, नाना, नानी आदि का इन 16 श्राद्धों में व्रत उपवास रखकर या श्राद्ध के दिन ब्राह्मण को पूर्ण श्रद्धा से भोजन कराकर दक्षिणा देते हैं,नित्य अपने पूर्वजों का तर्पण करते है उनके घर भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी सदैव ही विराजमान रहती हैं। अर्थात वे सदैव ही सुख, सौभाग्य धन धान्य से परिपूर्ण रहते हैं। अत: इस धरती में सभी व्यक्तियों को इन दिनों में अपने कर्तव्यों का अवश्य अवश्य ही पालन करना चाहिए ।

असली नकली प्रेतावेश की पहचान प्रेत बाधित व्यक्ति में उपर्युक्त लक्षण हैं, तो समझना चाहिए कि सचमुच प्रेत कष्ट से वह पीड़ित है, अन्यथा नहीं। व्यक्ति वास्तव में प्रेतग्रस्त है और उसके माध्यम से बोलने वाला वास्तव में प्रेत है या पालतू प्रेत है, इसे समझने के लिए एक हरा और ताजा नींबू लेकर उसे प्रेतग्रस्त व्यक्ति को दिखाकर चाकू से काटें और देखें अगर पालतू प्रेत होगा तो तत्काल भाग जाएगा, नहीं तो नहीं। पितर दोषों के उपाय:-  पितर दोष के लिए बृहस्पति की पूजा, पीपल ब्रहमा की पूजा तीन महीने करें। रोज प्रातः इतवार को छोड़कर दूध जल चीनी मिलाकर पीपल की जड़ में पनी डालें तथा कच्चा सूत लपेटें और जयोति जलाएं। हल्दी जैसे पीले रंग का प्रसाद बांटे, अपने बुजुर्गों की सेवा करें। लीला पुखराज नौ या बारह रत्ती का धारण करें और घर में नारायण बलि का हवन पाठ कराएं। वास्तव में पितर अपने वंशज की श्रद्धा के भूखे होते हैं, उनके द्वारा दी गई वस्तुओं के भूखे नहीं होते। श्राद्ध कर्म का मूल तत्व है, श्रद्धा। श्रद्धा और तप्रण सर्वथा निरर्थक है। कंजूसी करना अनुचित है। श्राद्धकर्ता पितरों के आशीर्वाद से धन धान्य, सुख समृद्धि,...

भूत-प्रेत के कारकभूत-प्रेत कारक ग्रह राहु से अधिक संबंध रखता है। चौथे स्थान में राहु, दसवें स्थान में शनि-मंगल हो तो उसके निवास स्थान में प्रेत का वास रहता है। इसके कारण धन हानि, संतान हानि, स्त्री को कष्ट इत्यादि होता है। अगर दूसरे, चौथे, पंचम, छठे, सातवें, द्वादश रवि के साथ राहु या गुरु के साथ राहु या तीनों एक जगह हों तो धन के लिए किसी की हत्या करना, विधवा स्त्री का धन, जायदाद आदि हड़प लेने से घर में पागलपन, दरिद्रता, लोगों के लापता हो जाने जैसी घटनाएं होती हैं। ऐसी हालत में वहां पिशाच, प्रेत का निवास होता है। पांच पीढ़ी तक यह दुख देता है।राहु अगर चंद्र या शुक्र के साथ हो तो किसी स्त्री का श्राप सात पीढ़ी तक चलता है। महारोग क्षयरोग गण्डमाला रोग, सांप का काटना इत्यादि घटनाएं होती हैं। राहु के साथ शनि आत्महत्या का कारक है। तंग होकर कोई खून के रिश्ते में आत्महत्या कर ले, तो सात पीढ़ी तक चलता है। औलाद व औरत न बचे, धन हानि होती है। ये हैं प्रेत दोष।इस प्रकार प्रथम भाव से खानदानी दोष देह पीड़ा द्वितीय भाव आकाश देवी, तृतीय भाव अग्नि दोष, चतुर्थ भाव प्रेत दोष, पंचम भाव देवी देवताओं का दोष, छठा भाव ग्रह दोष, सातवों भाव लक्ष्मी देवी दोष, आठवां भाव नाग देवता दोष, नवम भाव धर्म स्थान दोष, दशम भाव पितर दोष, लाभ भाव ग्रह दशा, व्यय भाव पिछले जन्म का ब्रहम दोष होता है। कोई ग्रह किसी घर में पीड़ित हो, सूर्य दो ग्रहों द्वारा पीड़ित हो तो जिस घर में होगा वही दोष होगा।भूत प्रेत कौन और कैसे?भूत प्रेत, जिन्नदि जैसे मनुष्यों में ब्राहमण, क्षत्रिय, वैश्य आदि जाति भेद हैं, उसी प्रकार उनकी भी जातियां या भेद सुविधानुसार किए गए हैं। इनमें भूत-प्रेत, जिन्न, ब्रहम, राक्षस, डाकिनी-शाकिनी आदि मुख्य हैं। जिनकी किसी दुर्घटना में मृत्यु हो जाती है, वे भूत प्रेत बन जाते हैं।1. जिसका जीवन में किसी ने ज्यादा शोषण किया हो, जिनको धोखे से किसी ने ठगा या हानि पहुंचाई हो। वे बदले की भावना में भूत प्रेत योनी स्वीकार कर लेते हैं।2. आत्महत्या या जहर देकर जिनकी हत्या हुई हो।3. जिनकी मरते समय कोई इच्छा अतृप्त रह जाती है, वे भूत प्रेत योनी में अथवा जन्म की सुरक्षा हेतु इस योनी में जन्म लेते हैं।4. जो पापी कामी क्रोधी और मूर्ख होते हैं, भूत प्रेत बन जाते हैं। प्रेत बाधाग्रस्त व्यक्ति की पहचानवास्तव में जो व्यक्ति प्रेत बाधित होता है उसकी आंखे स्थिर अधमुंदी और लाल रहती हैं। शरीर का तापमान सामान्य से अधिक होता है। हाथ पैर के नाखून काले पड़े होते हैं। भूख बिलकुल कम लगती है या फिर बहुत अधिक भोजन करता है। नींद आती ही नहीं या आती भी है तो बिलकुल कम। स्वभाव क्रोधी जिद्दी उग्र और उद्वंड हो जाता है। प्यास अधिक लगती है। शरीर से दुर्गंध और पसीना निकलता है।बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम

भूत-प्रेत के कारक भूत-प्रेत कारक ग्रह राहु से अधिक संबंध रखता है। चौथे स्थान में राहु, दसवें स्थान में शनि-मंगल हो तो उसके निवास स्थान में प्रेत का वास रहता है। इसके कारण धन हानि, संतान हानि, स्त्री को कष्ट इत्यादि होता है। अगर दूसरे, चौथे, पंचम, छठे, सातवें, द्वादश रवि के साथ राहु या गुरु के साथ राहु या तीनों एक जगह हों तो धन के लिए किसी की हत्या करना, विधवा स्त्री का धन, जायदाद आदि हड़प लेने से घर में पागलपन, दरिद्रता, लोगों के लापता हो जाने जैसी घटनाएं होती हैं। ऐसी हालत में वहां पिशाच, प्रेत का निवास होता है। पांच पीढ़ी तक यह दुख देता है। राहु अगर चंद्र या शुक्र के साथ हो तो किसी स्त्री का श्राप सात पीढ़ी तक चलता है। महारोग क्षयरोग गण्डमाला रोग, सांप का काटना इत्यादि घटनाएं होती हैं। राहु के साथ शनि आत्महत्या का कारक है। तंग होकर कोई खून के रिश्ते में आत्महत्या कर ले, तो सात पीढ़ी तक चलता है। औलाद व औरत न बचे, धन हानि होती है। ये हैं प्रेत दोष। इस प्रकार प्रथम भाव से खानदानी दोष देह पीड़ा द्वितीय भाव आकाश देवी, तृतीय भाव अग्नि दोष, चतुर्थ भाव प्रेत दोष, पंचम भाव देवी देवताओं...

पुनीत एवं अनिवार्य कर्त्तव्यश्राद्ध की तिथि में इस बात का भान रहे कि आपके पित्तर किसी ना किसी रूप में स्वयं उपस्थित हैं तथा आपका उनके निमित्त श्रद्धा से किये गये कर्म से वह अवश्य ही संतुष्ट होंगे तथा आपको आशीर्वाद देंगे लेकिन अगर हमने उनके प्रति आभार कृत्तज्ञता एवं श्राद्ध कर्म नहीं किया तो वह फिर पूरे वर्ष निराशा, बेचैनी, निर्बलता एवं दुख का अनुभव करेंगे। शास्त्रों में भी श्राद्ध कर्म को हर हिन्दू का पुनीत एवं अनिवार्य कर्त्तव्य बताया गया है।ब्रह्म वैवर्त पुराण और मनुस्मृतिब्रह्म वैवर्त पुराण और मनुस्मृति में ऐसे लोगों की घोर भत्र्सना की गई है जो इस मृत्युलोक में आकर अपने पितरों को भूल जाते हैं और सांसारिक मोहमाया, अज्ञानतावश अथवा संस्कार हीनता के कारण कभी भी अपने दिव्य पितरों को याद नहीं करते है।अपने पितरों का तिथि अनुसार श्राद्ध करने से पितृ प्रसन्न होकर अनुष्ठाता की आयु को बढ़ा देते हैं। साथ ही धन धान्य, पुत्र-पौत्र तथा यश प्रदान करते हैं। श्राद्ध चंद्रिका में कर्म पुराण के माध्यम से वर्णन है कि मनुष्य के लिए श्राद्ध से बढ़कर और कोई कल्याण कर वस्तु है ही नहीं इसलिए हर समझदार मनुष्य को पूर्ण श्रद्धा से श्राद्ध का अनुष्ठान अवश्य ही करना चाहिए। स्कन्द पुराण स्कन्द पुराण के नागर खण्ड में कहा गया है कि श्राद्ध की कोई भी वस्तु व्यर्थ नहीं जाती, अतएव श्राद्ध अवश्य करना चाहिए।श्राद्ध पक्ष में राहुकाल में तर्पणश्राद्ध पक्ष में राहुकाल में तर्पण, श्राद्ध वर्जित है अत: इस समय में उपरोक्त कार्य नहीं करने चाहिए ।श्राद्ध में ब्राह्मण भोजन गजछाया के ( मध्यान का समय ) दौरान किया जाये तो अति उत्तम है ! गजछाया दिन में 12 बजे से 2 बजे के मध्य रहती है । सुबह अथवा 12 बजे से पहले किया गया श्राद्ध पितरों तक कतई नही पहॅंचता है। यह सिर्फ रस्मअदायगी मात्र ही है ।श्राद्ध के दिन लहसुन, प्याज रहित सात्विक भोजन ही घर की रसोई में बनाना चाहिए, जिसमें उड़द की दाल, बडे, दूध-घी से बने पकवान, चावल, खीर, बेल पर लगने वाली मौसमी सब्जीयाँ जैसे- लौकी, तोरई, भिण्डी, सीताफल, कच्चे केले की सब्जी ही बनानी चाहिए । आलू, मूली, बैंगन, अरबी तथा जमीन के नीचे पैदा होने वाली सब्जियाँ पितरो के श्राद्ध के दिन नहीं बनाई जाती हैं। पितरों को खीर बहुत पसंद होती है इसलिए उनके श्राद्ध के दिन और प्रत्येक माह की अमावस्या को खीर बनाकर ब्राह्मण को भोजन के साथ खिलाने पर महान पुण्य की प्राप्ति होती है, जीवन से अस्थिरताएँ दूर होती है ।श्राद्ध पक्ष में पितरों के श्राद्ध के समयश्राद्ध पक्ष में पितरों के श्राद्ध के समय शास्त्रानुसार कुछ विशेष वस्तुओं और सामग्री का उपयोग उचित और कुछ को निषेध बताया गया है।1- श्राद्ध में सात पदार्थ बहुत ही महत्वपूर्ण बताए गए हैं जैसे - गंगाजल, दूध, शहद, तरस का कपड़ा, दौहित्र, कुश और तिल।2- शास्त्रों के अनुसार, तुलसी से पितृगण प्रसन्न होते हैं। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि तुलसी से पिंड की पूजा करने से पितर लोग प्रलयकाल तक संतुष्ट रहते हैं, और श्राद्ध के पश्चात गरुड़ पर सवार होकर विष्णुलोक को चले जाते हैं। ।3 - श्राद्ध में भोजन में सोने, चांदी कांसे, तांबे के पात्र उत्तम हैं। इनके अभाव में पत्तल का भी प्रयोग किया जा सकता है, लेकिन लोहे अथवा स्टील के बर्तनों का उपयोग नहीं करना चाहिए |4 - रेशमी, कंबल, ऊन, लकड़ी, तृण, पर्ण, कुश आदि के आसन श्रेष्ठ हैं। इसमें कुश के आसान को सर्वश्रेष्ठ कहा गया है ।5 - आसन में लोहा किसी भी रूप में प्रयुक्त नहीं होना चाहिए।6 - श्राद्ध में केले के पत्ते पर श्राद्ध भोजन करना निषेध है।7 - चना, मसूर, कुलथी, सत्तू, मूली, काला जीरा, कचनार, खीरा, काला उड़द, काला नमक, बड़ी सरसों, काले सरसों की पत्ती और बासी, अपवित्र फल या अन्न श्राद्ध में निषेध हैं।8 - वृहत्पराशर में श्राद्ध की अवधि में मांस भक्षण, क्रोध, हिंसा, अनैतिक कार्य एवं स्त्री से शारीरिक सम्बन्ध, मैथुन कार्य आदि का निषेध बताया गया है। कहते है की इस अवधि में मैथुन करने से पितरों को वीर्यपान करना पड़ता है जिससे उन्हें बेहद कष्ट मिलता है अत: पितृ पक्ष में व्यक्ति को सयंम अवश्य ही बरतना चाहिए ।पित्तर पक्ष में स्वर्गस्थ आत्माओं की तृप्ति के लिये तर्पण किया जाता है। कहते है इसे गृहण करने के लिये पित्तर पितृ पक्ष में अपने वंशजों के द्वार पर आस लगाये रहते है। तर्पण में पित्तरों को अर्पण किये जाने वाले जल में दूध, जौ, चावल, तिल, चन्दन, फूल मिलाये जाते है।पितृ तर्पण उसी तिथि को किया जाता हैपितृ तर्पण उसी तिथि को किया जाता है जिस तिथि को पूर्वजों का देहान्त हुआ हो जिन्हें पूर्वजों की मृत्यु की तिथि याद ना हो वह अश्विन कृष्ण अमावस्या यानि सर्वपितृमोक्ष अमावस्या को यह कार्य करते है ताकि पित्तरों को मोक्ष मार्ग दिखाया जा सके। पितृ पक्ष की नौवी तिथि जिसे मातृ नवमी भी कहते है को सुहागन महिलाओं का श्राद्ध एवं तर्पण करना चाहिए।वैसे यदि हो सके तो पूरे पितृ पक्ष में हमें अपने पित्तरों को नमन करते हुये जल में अक्षत, मीठा, चन्दन, जौ, तिल एवं फूल डालकर श्रद्धापूर्वक तर्पण करना चाहिए।कहते है पितृ पक्ष में पित्तरों के निमित उनके गोत्र तथा नाम का उच्चारण करके जो भी वस्तुएं उन्हे अर्पित की जाती है वह उन्हें उनकी योनि के हिसाब से प्राप्त होती है पित्तर योनि पर सूक्ष्म द्रव्य रूप में, देव लोक में होने पर अमृत रूप में, गन्धर्व लोक में होने पर भोग्य रूप में, पशु योनि में तृण रूप में, सर्प योनि में वायु रूप में ,यक्ष योनि में पेय रूप में, दानव योनि में माँस रूप में, प्रेत योनि में रूधिर रूप में, तथा पित्तर मनुष्य योनि में हो तो उन्हे अन्न धन आदि के रूप में प्राप्त होता है।

पुनीत एवं अनिवार्य कर्त्तव्य श्राद्ध की तिथि में इस बात का भान रहे कि आपके पित्तर किसी ना किसी रूप में स्वयं उपस्थित हैं तथा आपका उनके निमित्त श्रद्धा से किये गये कर्म से वह अवश्य ही संतुष्ट होंगे तथा आपको आशीर्वाद देंगे लेकिन अगर हमने उनके प्रति आभार कृत्तज्ञता एवं श्राद्ध कर्म नहीं किया तो वह फिर पूरे वर्ष निराशा, बेचैनी, निर्बलता एवं दुख का अनुभव करेंगे। शास्त्रों में भी श्राद्ध कर्म को हर हिन्दू का पुनीत एवं अनिवार्य कर्त्तव्य बताया गया है। ब्रह्म वैवर्त पुराण और मनुस्मृति ब्रह्म वैवर्त पुराण और मनुस्मृति में ऐसे लोगों की घोर भत्र्सना की गई है जो इस मृत्युलोक में आकर अपने पितरों को भूल जाते हैं और सांसारिक मोहमाया, अज्ञानतावश अथवा संस्कार हीनता के कारण कभी भी अपने दिव्य पितरों को याद नहीं करते है। अपने पितरों का तिथि अनुसार श्राद्ध करने से पितृ प्रसन्न होकर अनुष्ठाता की आयु को बढ़ा देते हैं। साथ ही धन धान्य, पुत्र-पौत्र तथा यश प्रदान करते हैं। श्राद्ध चंद्रिका में कर्म पुराण के माध्यम से वर्णन है कि मनुष्य के लिए श्राद्ध से बढ़कर और कोई कल्याण कर वस्तु है ही नहीं इसलिए ...

श्राद्ध श्रद्धा शब्द से बना है,श्राद्ध श्रद्धा शब्द से बना है। श्रद्धापूर्वक किये गये कर्म को श्राद्ध कहते है। पित्तरों का श्राद्ध करने से कुछ लाभ है अथवा नहीं इसका उत्तर है कि लाभ है अवश्य है और यह लाभ श्राद्ध करने वाले को अत्यधिक तथा पित्तरों को उसका सूक्ष्म अंश मिलता है जिससे वह अत्यधिक शक्ति, प्रसन्नता एवं सन्तोष का अनुभव करते हैं क्योंकि इस संसार में प्रत्येक जीव या आत्मा किसी ना किसी रूप में विद्यमान अवश्य रहती है। श्राद्ध के समय पित्तरों के द्वारा जो हमारे ऊपर उपकार हुये है उनका स्मरण करके उनके प्रति अपनी श्रद्धा एवं भावना जरूर व्यक्त करनी चाहिये।पित्तरों का श्राद्ध होता हैयह मान्यता है कि पित्तर पक्ष में जिस दिन हमारे पित्तरों का श्राद्ध होता है वह स्वयं भी वहाँ सूक्ष्म रूप में उपस्थित रहते हैं तथा ब्राहमणों के साथ वायु रूप में भोजन करते है। महाभारत में एक प्रसंग है कि जब भीष्म जी अपने पिता महाराज शान्तनु का पिण्डदान करने लगे तो उनके सम्मुख साक्षात शान्तनु जी के दाहिने हाथ ने प्रकट होकर पिण्ड ग्रहण किया।रामायण के अनुसाररामायण के अनुसार जब मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम वन में अपने पिता का श्राद्ध कर रहे थे तब सीता जी ने श्राद्ध की समस्त सामग्रियां स्वयं अपने हाथ से तैयार की लेकिन जब ब्राहमणों को भोजन करने के लिये आमंत्रित किया गया तो वह कुटी में जल्दी से जा छुपी। बाद में जब भगवान राम ने सीता जी से उनकी परेशानी एवं छुपने का कारण पूछा तो उन्होंने कहा मैंने उन ब्राहमणों में आपके पिता महाराज दशरथ जी के दर्शन किये है, उनके सम्मुख मैं सदैव आभूषणों से सुशोभित रही हूँ वह कैसे मुझे इन कपड़ों में बिना आभूषणों, पसीने मैल से सना हुआ देख पाते।

श्राद्ध श्रद्धा शब्द से बना है , श्राद्ध श्रद्धा शब्द से बना है। श्रद्धापूर्वक किये गये कर्म को श्राद्ध कहते है। पित्तरों का श्राद्ध करने से कुछ लाभ है अथवा नहीं इसका उत्तर है कि लाभ है अवश्य है और यह लाभ श्राद्ध करने वाले को अत्यधिक तथा पित्तरों को उसका सूक्ष्म अंश मिलता है जिससे वह अत्यधिक शक्ति, प्रसन्नता एवं सन्तोष का अनुभव करते हैं क्योंकि इस संसार में प्रत्येक जीव या आत्मा किसी ना किसी रूप में विद्यमान अवश्य रहती है। श्राद्ध के समय पित्तरों के द्वारा जो हमारे ऊपर उपकार हुये है उनका स्मरण करके उनके प्रति अपनी श्रद्धा एवं भावना जरूर व्यक्त करनी चाहिये। पित्तरों का श्राद्ध होता है यह मान्यता है कि पित्तर पक्ष में जिस दिन हमारे पित्तरों का श्राद्ध होता है वह स्वयं भी वहाँ सूक्ष्म रूप में उपस्थित रहते हैं तथा ब्राहमणों के साथ वायु रूप में भोजन करते है। महाभारत में एक प्रसंग है कि जब भीष्म जी अपने पिता महाराज शान्तनु का पिण्डदान करने लगे तो उनके सम्मुख साक्षात शान्तनु जी के दाहिने हाथ ने प्रकट होकर पिण्ड ग्रहण किया। रामायण के अनुसार रामायण के अनुसार जब मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम ...