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दोष जो पित्तरों से सम्बन्धित होता हैवह दोष जो पित्तरों से सम्बन्धित होता है पितृदोष कहलाता है। यहाँ पितृ का अर्थ पिता नहीं वरन् पूर्वज होता है। ये वह पूर्वज होते है जो मुक्ति प्राप्त ना होने के कारण पितृलोक में रहते है तथा अपने प्रियजनों से उन्हे विशेष स्नेह रहता है। श्राद्ध या अन्य धार्मिक कर्मकाण्ड ना किये जाने के कारण या अन्य किसी कारणवश रूष्ट हो जाये तो उसे पितृ दोष कहते है।विश्व के लगभग सभी धर्मों में यह माना गया है कि मृत्यु के पश्चात् व्यक्ति की देह का तो नाश हो जाता है लेकिन उनकी आत्मा कभी भी नहीं मरती है। पवित्र गीता के अनुसार जिस प्रकार स्नान के पश्चात् हम नवीन वस्त्र धारण करते है उसी प्रकार यह आत्मा भी मृत्यु के बाद एक देह को छोड़कर नवीन देह धारण करती है।हमारे पित्तरों को भी सामान्य मनुष्यों की तरह सुख दुख मोह ममता भूख प्यास आदि का अनुभव होता है। यदि पितृ योनि में गये व्यक्ति के लिये उसके परिवार के लोग श्राद्ध कर्म तथा श्रद्धा का भाव नहीं रखते है तो वह पित्तर अपने प्रियजनों से नाराज हो जाते है।पित्तरों के पास आलौकिक शक्तियां होती हैसमान्यतः इन पित्तरों के पास आलौकिक शक्तियां होती है तथा यह अपने परिजनों एवं वंशजों की सफलता सुख समृद्धि के लिये चिन्तित रहते है जब इनके प्रति श्रद्धा तथा धार्मिक कर्म नहीं किये जाते है तो यह निर्बलता का अनुभव करते है तथा चाहकर भी अपने परिवार की सहायता नहीं कर पाते है तथा यदि यह नाराज हो गये तो इनके परिजनों को तमाम कठनाइयों का सामना करना पड़ता है।पितृ दोष होने पर व्यक्तिपितृ दोष होने पर व्यक्ति को जीवन में तमाम तरह की परेशानियां उठानी पड़ती है जैसे घर में सदस्यों का बिमार रहना मानसिक परेशानी सन्तान का ना होना कन्या का अधिक होना या पुत्र का ना होना पारिवारिक सदस्यों में वैचारिक मतभेद होना जीविकोपार्जन में अस्थिरता या पर्याप्त आमदनी होने पर भी धन का ना रूकना प्रत्येक कार्य में अचानक रूकावटें आना सर पर कर्ज का भार होना सफलता के करीब पहुँचकर भी असफल हो जाना प्रयास करने पर भी मनवांछित फल का ना मिलना आकस्मिक दुर्घटना की आशंका तथा वृद्धावस्था में बहुत दुख प्राप्त होना आदि। बहुत से लोगों की कुण्डली में कालसर्प योग भी देखा जाता है वस्तुतः कालसर्प योग भी पितृ दोष के कारण ही होता जिसकी वजह से मनुष्य के जीवन में तमाम मुसीबतों एवं अस्थिरता का सामना करना पड़ता है।⇐तर्पण का महत्वहिन्दु धर्म शास्त्रों में- वसु, आदित्य और रुद्र इन तीन देवताओं को क्रमशः पितृ, पितामह और प्रपितामह का पोषण प्रतिनिधि माना है। हमारे विवाह में भी गात्रोच्चारण में पितृ, पितामह, प्रपितामह इन तीनों का ही उल्लेख होता है।येन पितुः पितरो ये पितामहास्तेभ्यः पितृभ्योनमसा विधेम।अर्थात्‌ पितृ, पितामह, प्रपितामाहों को हम श्राद्ध से तृप्त करते हैं।त्रयाणामुदकं कार्य त्रिषु पिंडः प्रवर्तते।चतुर्थः सम्प्रदातैषां पंचमो नापि विद्यते॥अर्थात्‌ पिता, पितामह और प्रपितामह इन तीनों का श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान होता है। चौथा श्राद्धकर्ता स्वयं यजमान होता है, और यहाँ पर पाँचवें की कोई सम्भावना ही नहीं है।तिल और पानी की जलांजली के माध्यम से हम अपने पित्रों को संतुष्ट करते हुए उनको और ऊंचे स्तर पर पहुंचा सकते हैं।तर्पण में हम उन्हें मंत्रों के साथ पानी और तिल की पेशकश करते हैं तर्पण जो उन्हें बहुत पसंद है और वह शीघ्रता से प्रसन्न हो जाते है ।महाभारत,आदि पर्व, 74.39 मे लिखा हैपुन्नाम्नॊ नरकादयस्मात्पितरम् त्रायते सुत:तस्मात्पुत्र इति प्रॊक्त: स्वयमॆव स्वयम्भुवाबेटा पिता को पुत नाम का नरक से बचाता है,इसलिए उसे स्वयंभु भगवान ने पुत्र नाम रखा था।हमारे पूर्वजों की मौत के बाद हमें उनकी आगे की यात्रा के बारे में कुछ भी पता नहीं होता है, वे कहाँ, किस रूप में है, उन्होंने जन्म लिया है या नहीं, जन्म लिए है तो कहाँ किसी को कुछ भी पता नहीं होता है, लेकिन यह हमारा कर्तव्य है की हम उन्हें जीवित भी खुश रखें और उनकी मृत्यु के बाद भी। पितृ तर्पण एक अद्भुत मौका है जिसमें देवताओं, वसु, रुद्र और आदित्य,चाहे हमारे पितृ किधर भी किसी भी रूप में हो, उनको सूक्ष्म माध्यम से हमारे जल और तिल को पित्रों के पास उत्तम रूप मे पहुंचा देते हैं।चूँकि पितरों को भी पोषण की जरूरत है। इसलिए जब हम उनको तर्पण देते हैं,वे संतुष्ट हो जाते हैं और हमें सुख,दौलत और सत संतति की आशीर्वाद देते हैं। और जब वे अच्छाई करते हैं,तब उसके हिसाब से उनको भी ऊंचाई मिल जाती है।तर्पण करने से पहले कुछ भी नहीं खाना चाहिए. उस दिन के रात में, किसी भी उपवास खाना खाना चाहिए|वैसे ही तिथि के पहले दिन की रात मे भी उपवास का खाना लेना है।प्रतिदिन तर्पण के दिन की सुबह में गीले किए हुये और सूखे धोती / कपड़ा पहनना चाहिए. यदि संभव हो तो पिछली रात मे धोती को धो के एक स्थान पर लटकाए जिधर कोई नहीं छुए।तर्पण करने से व्यक्ति के जन्म के आरंभ से तर्पण के दिन तक जाने अनजाने किए गए पाप उसी समय नष्ट हो जाते हैं।"समयानुसार श्राद्ध, तर्पण करने से कुल में कोई दुःखी नहीं रहता। पितरों की पूजा करके मनुष्य आयु, पुत्र, यश, स्वर्ग, कीर्ति, पुष्टि, बल, श्री, पशु, सुख और धन-धान्य प्राप्त करता है। देवकार्य से भी पितृकार्य का विशेष महत्त्व है। देवताओं से पहले पितरों को प्रसन्न करना अधिक कल्याणकारी है।"पितृपक्ष में तीन पीढ़ियों तक के पिता पक्ष के तथा तीन पीढ़ियों तक के माता पक्ष के पूर्वजों के लिए तर्पण किया जाता हैं। तर्पण करते समय एक पीतल के बर्तन में जल में गंगाजल , कच्चा दूध, तिल, जौ, तुलसी के पत्ते, दूब, शहद और सफेद फूल आदि डाल कर फिर एक लोटे से पहले देवताओं, ऋषियों, और सबसे बाद में पितरों का तर्पण करना चाहिए।कुश तथा काला तिल भगवान विष्णु के शरीर से उत्पन्न हुए हैं तथा चांदी भगवान शिव के नेत्रों से प्रकट हुई हैं। गाय का दूध और गंगाजल का प्रयोग श्राद्ध के कर्मफल को कई गुना तक बढ़ा देता है। तुलसी बहुत ही पवित्र मानी जाती है अत: इसके प्रयोग से पितृ अत्यंत प्रसन्न होते हैं।तर्पण में कुशा (पवित्री) का प्रयोग अनिवार्य है। दो कुशा से बनाई हुई पवित्री (अंगूठी) दा‍हिने हाथ की अनामिका अंगुली तथा तीन कुशाओं से मिलाकर बनाई गई पवित्री बाईं अनामिका में धारण करें, यह आप खुद भी बना सकते या बाज़ार में किसी भी पूजा की दुकान में मिल जाता है।पितरों के तर्पण में सोना-चांदी, कांसा या तांबे के पात्र का ही उपयोग करना चाहिए। लेकिन लौह के पात्र अशुद्ध माने गए हैं। अत: यथासंभव लोहे के बर्तनो का प्रयोग नहीं ही करना चाहिए ।तर्पण, श्राद्ध में तिल और कुशा सहित जल हाथ में लेकर देवताओं का तर्पण करते समय पूर्व दिशा की तरफ मुँह करके देवताओं का नाम लेकर एक एक बार तपरान्तयामि बोलते हुए उन्हें मध्यमा ऊँगली से जल गिराते हुए जलांजलि दें ।ऋषियों का तर्पण करते समय उत्तर दिशा की तरफ मुँह करके दो बार तपरान्तयामि, तपरान्तयामि बोलते हुए उन्हें मध्यमा ऊँगली के दोनों तरफ से जल गिराते हुए जलांजलि दें ।इसके पश्चात दक्षिण दिशा की तरफ मुँह करके सबसे पहले भगवान यमराज फिर चित्रगुप्त का नाम लेते हुए और उसके बाद अपने सभी पितरों का नाम लेते हुए सबके नाम के बाद तीन बार तपरान्तयामि, तपरान्तयामि, कहकर पितृ तीर्थ यानी अँगूठे के बगल की उँगली और अंगूठे के बीच से जलांजलि देते हुए जल को धरती में किसी बर्तन में छोड़ने से पितरों को तृप्ति मिलती है।तर्पण करते समय पहले अपने ददिहाल के सभी पितरों उसके बाद अपने ननिहाल के सभी पितरों का नाम लेते हुए उनका तर्पण करें, फिर अपने वंश के भूले हुए, पितृ जिन तक आपका तर्पण पहुँचना चाहिए उन सभी पितरों को एक साथ जलांजलि देते हुए उनका तर्पण करें ।अंत में पूर्व की ओर मुंह करके शुद्ध जल से सूर्य को अर्घ्य प्रदान करें।ध्यान रहे तर्पण का जल तर्पण के बाद किसी वृक्ष की जड़ में चड़ा देना चाहिए वह जल इधर उधर बहाना नहीं चाहिए ।हमारे धार्मिक ग्रंथों के अनुसार तर्पण का जल सूर्योदय से आधे प्रहर तक अमृत, एक प्रहर तक शहद , डेढ़ प्रहर तक दूध और साढ़े तीन प्रहर तक जल रूप में हमारे पितरों को प्राप्त होता है। अत: हमें सुबह सवेरे ही तर्पण करना चाहिए ।हमारे पूर्वज अपने वंशजों से अपने प्रति श्रद्धा, कृतज्ञता एवं स्मरण की अपेक्षा रखते है । और यह सभी व्यक्तियों का अनिवार्य कर्तव्य है कि वह अपने पूर्वजों के प्रति अपने कर्तव्यों का निश्चित ही पालन करें । जिस भी व्यक्ति के माता पिता जीवित है यह उसका दायित्व है कि वह अपने माता पिता को उनके पूर्वजों के प्रति किये जाने वाले कर्मों के बारे में बताये । याद रखिये यदि कोई व्यक्ति जान बूझ कर अपने पूर्वजों का श्राद्ध, पितृ पक्ष में प्रतिदिन तर्पण नहीं करता है तो वह घोर नरक का भागी होता है, और जिस भी व्यक्ति को इन कर्म कांडों के बारे में ज्ञान है लेकिन वह अन्य लोगो को इसके बारे में नहीं बताते है वह भी पाप के भागी होते है । अत: यह हम सभी की जिम्मेदारी है की हम समाज के सभी लोगो को पितरों के प्रति कर्तव्यों के बारे में अवश्य ही बताएं ।

दोष जो पित्तरों से सम्बन्धित होता है वह दोष जो पित्तरों से सम्बन्धित होता है पितृदोष कहलाता है। यहाँ पितृ का अर्थ पिता नहीं वरन् पूर्वज होता है। ये वह पूर्वज होते है जो मुक्ति प्राप्त ना होने के कारण पितृलोक में रहते है तथा अपने प्रियजनों से उन्हे विशेष स्नेह रहता है। श्राद्ध या अन्य धार्मिक कर्मकाण्ड ना किये जाने के कारण या अन्य किसी कारणवश रूष्ट हो जाये तो उसे पितृ दोष कहते है। विश्व के लगभग सभी धर्मों में यह माना गया है कि मृत्यु के पश्चात् व्यक्ति की देह का तो नाश हो जाता है लेकिन उनकी आत्मा कभी भी नहीं मरती है। पवित्र गीता के अनुसार जिस प्रकार स्नान के पश्चात् हम नवीन वस्त्र धारण करते है उसी प्रकार यह आत्मा भी मृत्यु के बाद एक देह को छोड़कर नवीन देह धारण करती है। हमारे पित्तरों को भी सामान्य मनुष्यों की तरह सुख दुख मोह ममता भूख प्यास आदि का अनुभव होता है। यदि पितृ योनि में गये व्यक्ति के लिये उसके परिवार के लोग श्राद्ध कर्म तथा श्रद्धा का भाव नहीं रखते है तो वह पित्तर अपने प्रियजनों से नाराज हो जाते है। पित्तरों के पास आलौकिक शक्तियां होती है समान्यतः इन पित्तरों के पास आलौकिक शक्...

परालौकिक शक्तिपरावैज्ञानिकों को अपने अनुसंधानों के दौरान अनेकों साक्ष्य मिलें है जिससे यह पता चलता है कि तमाम पित्तरों ने समय समय पर अपने आत्मीयों की कठिनाइयों में सहायता की है तथा उनका उचित मार्गदर्शन भी किया है कहीं यह नजर आये है कहीं उनकी आवाज सुनाई पड़ी है और कहीं यह स्पष्ट आभास हुआ है कि कोई परालौकिक शक्ति हमारी मददगार बनी है प्रश्न हमारा उनके प्रति श्रद्धा विश्वास एवं कठिनाइयों में उनका स्मरण करने का हैआरम्भिक जन्महिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार चाहे शरीरधारियों की 84 लाख योनियां ही क्यों ना हो परन्तु उनका आरम्भिक जन्म एक रसायनिक तत्व से ही हुआ है। सृष्टि के आरम्भ में एक ही जीव रसायन था और वही अभी तक समस्त प्राणियों की संरचना का एकमात्र कारण है। परिस्थितियों के लम्बे समय के क्रमिक विकास के कारण एक से अनेक बने प्राणधारी विभिन्न स्तर विभिन्न आकृतियों एवं प्रकृतियों के बनते चले गये है और आज इतनी अधिक संख्या में जीव योनियां बन गयी है।पित्तर पूजन एवं श्राद्ध धर्म की परम्पराहमें अपने पित्तरों के प्रति वैसी ही श्रद्धा भावना रखनी चाहिये जैसा हम प्रभु के प्रति रखते है। संसार में सभी धर्मों एवं सभ्यताओं में पित्तरों के प्रति कर्त्तव्य पूरा करने को कहा गया है। अनेक धर्मों में अलग अलग रीतियों से पित्तर पूजन एवं श्राद्ध धर्म की परम्परा प्रचलित है। पित्तरों को स्थूल सहायता की नही वरन् सूक्ष्म भावनात्मक सहयोग एवं श्रद्धा मात्र की ही आवश्यकता होती है क्योंकि वह सूक्ष्म शरीर में ही रहते है तथा प्रसन्न होने पर यही पित्तर बदले में प्रेरणा शक्ति सहयोग मार्गदर्शन एवं सफलता प्रदान करते है

परालौकिक शक्ति परावैज्ञानिकों को अपने अनुसंधानों के दौरान अनेकों साक्ष्य मिलें है जिससे यह पता चलता है कि तमाम पित्तरों ने समय समय पर अपने आत्मीयों की कठिनाइयों में सहायता की है तथा उनका उचित मार्गदर्शन भी किया है कहीं यह नजर आये है कहीं उनकी आवाज सुनाई पड़ी है और कहीं यह स्पष्ट आभास हुआ है कि कोई परालौकिक शक्ति हमारी मददगार बनी है प्रश्न हमारा उनके प्रति श्रद्धा विश्वास एवं कठिनाइयों में उनका स्मरण करने का है आरम्भिक जन्म हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार चाहे शरीरधारियों की 84 लाख योनियां ही क्यों ना हो परन्तु उनका आरम्भिक जन्म एक रसायनिक तत्व से ही हुआ है। सृष्टि के आरम्भ में एक ही जीव रसायन था और वही अभी तक समस्त प्राणियों की संरचना का एकमात्र कारण है। परिस्थितियों के लम्बे समय के क्रमिक विकास के कारण एक से अनेक बने प्राणधारी विभिन्न स्तर विभिन्न आकृतियों एवं प्रकृतियों के बनते चले गये है और आज इतनी अधिक संख्या में जीव योनियां बन गयी है। पित्तर पूजन एवं श्राद्ध धर्म की परम्परा हमें अपने पित्तरों के प्रति वैसी ही श्रद्धा भावना रखनी चाहिये जैसा हम प्रभु के प्रति रखते है। संस...

पित्तर कौन होते है पित्तरों का महत्वसंसार के समस्त धर्मों में कहा गया है कि मरने के बाद भी जीवात्मा का अस्तित्व समाप्त नहीं होता है वरन वह किसी ना किसी रूप में बना ही रहता हे। जैसे मनुष्य कपड़ों को समय समय पर बदलते रहते है उसी तरह जीव को भी शरीर बदलने पड़ते है जिस प्रकार तमाम जीवन भर एक ही कपड़ा नहीं पहना जा सकता है उसी प्रकार आत्मा अनन्त समय तक एक ही शरीर में नही ठहर सकती है।ना जायते म्रियते वा कदाचिन्नाय भूत्वा भविता वा न भूपःऊजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे।गीता.2ए अध्याय.20अर्थात आत्मा ना तो कभी जन्म लेती है और ना ही मरती है मरना जीना तो शरीर का धर्म है शरीर का नाश हो जाने पर भी आत्मा का नाश नहीं होता है। विज्ञान के अनुसार कोई भी पदार्थ कभी भी नष्ट नहीं होता है वरन् उसके रूप में परिवर्तन हो जाता है।व्यक्ति के सत्संस्कार होने के बाद यही अक्षय आत्मा पित्तर रूप में क्रियाशील रहती है तथा अपनी आत्मोन्नति के लिये प्रयासरत रहने के साथ पृथ्वी पर अपने स्वजनों एवं सुपात्रों की मदद के लिये सदैव तैयार रहती है।हिन्दु धर्म ग्रंथो में पितरों को संदेशवाहक भी कहा गया है|शास्त्रों में लिखा है..............ॐ अर्यमा न तृप्यताम इदं तिलोदकं तस्मै स्वधा नम:।ॐ मृर्त्योमा अमृतं गमय||अर्थात, अर्यमा पितरों के देव हैं, जो सबसे श्रेष्ठ है उन अर्यमा देव को प्रणाम करता हूँ ।हे! पिता, पितामह, और प्रपितामह। हे! माता, मातामह और प्रमातामह आपको भी बारम्बार प्रणाम है . आप हमें मृत्यु से अमृत की ओर ले चलें। इसका अर्थ है कि हम पूरे वर्ष भर अपने देवों को समर्पित अनेकों पर्वों का आयोजन करते हैं, लेकिन हममे से बहुत लोग यह महसूस करते है की हमारी प्रार्थना देवों तक नही पहुँच प़ा रही है। हमारे पूर्वज देवों और हमारे मध्य एक सेतु का कार्य करते हैं,और जब हमारे पितृ हमारी

पित्तर कौन होते है पित्तरों का महत्व संसार के समस्त धर्मों में कहा गया है कि मरने के बाद भी जीवात्मा का अस्तित्व समाप्त नहीं होता है वरन वह किसी ना किसी रूप में बना ही रहता हे। जैसे मनुष्य कपड़ों को समय समय पर बदलते रहते है उसी तरह जीव को भी शरीर बदलने पड़ते है जिस प्रकार तमाम जीवन भर एक ही कपड़ा नहीं पहना जा सकता है उसी प्रकार आत्मा अनन्त समय तक एक ही शरीर में नही ठहर सकती है। ना जायते म्रियते वा कदाचिन्नाय भूत्वा भविता वा न भूपः ऊजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे। गीता.2ए अध्याय.20 अर्थात आत्मा ना तो कभी जन्म लेती है और ना ही मरती है मरना जीना तो शरीर का धर्म है शरीर का नाश हो जाने पर भी आत्मा का नाश नहीं होता है। विज्ञान के अनुसार कोई भी पदार्थ कभी भी नष्ट नहीं होता है वरन् उसके रूप में परिवर्तन हो जाता है। व्यक्ति के सत्संस्कार होने के बाद यही अक्षय आत्मा पित्तर रूप में क्रियाशील रहती है तथा अपनी आत्मोन्नति के लिये प्रयासरत रहने के साथ पृथ्वी पर अपने स्वजनों एवं सुपात्रों की मदद के लिये सदैव तैयार रहती है। हिन्दु धर्म ग्रंथो में पितरों को संदेशवाहक भी कहा गया है| ...

पित्तर कौन होते है पित्तरों का महत्वसंसार के समस्त धर्मों में कहा गया है कि मरने के बाद भी जीवात्मा का अस्तित्व समाप्त नहीं होता है वरन वह किसी ना किसी रूप में बना ही रहता हे। जैसे मनुष्य कपड़ों को समय समय पर बदलते रहते है उसी तरह जीव को भी शरीर बदलने पड़ते है जिस प्रकार तमाम जीवन भर एक ही कपड़ा नहीं पहना जा सकता है उसी प्रकार आत्मा अनन्त समय तक एक ही शरीर में नही ठहर सकती है।ना जायते म्रियते वा कदाचिन्नाय भूत्वा भविता वा न भूपःऊजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे।गीता.2ए अध्याय.20अर्थात आत्मा ना तो कभी जन्म लेती है और ना ही मरती है मरना जीना तो शरीर का धर्म है शरीर का नाश हो जाने पर भी आत्मा का नाश नहीं होता है। विज्ञान के अनुसार कोई भी पदार्थ कभी भी नष्ट नहीं होता है वरन् उसके रूप में परिवर्तन हो जाता है।व्यक्ति के सत्संस्कार होने के बाद यही अक्षय आत्मा पित्तर रूप में क्रियाशील रहती है तथा अपनी आत्मोन्नति के लिये प्रयासरत रहने के साथ पृथ्वी पर अपने स्वजनों एवं सुपात्रों की मदद के लिये सदैव तैयार रहती है।हिन्दु धर्म ग्रंथो में पितरों को संदेशवाहक भी कहा गया है|शास्त्रों में लिखा है..............ॐ अर्यमा न तृप्यताम इदं तिलोदकं तस्मै स्वधा नम:।ॐ मृर्त्योमा अमृतं गमय||अर्थात, अर्यमा पितरों के देव हैं, जो सबसे श्रेष्ठ है उन अर्यमा देव को प्रणाम करता हूँ ।हे! पिता, पितामह, और प्रपितामह। हे! माता, मातामह और प्रमातामह आपको भी बारम्बार प्रणाम है . आप हमें मृत्यु से अमृत की ओर ले चलें। इसका अर्थ है कि हम पूरे वर्ष भर अपने देवों को समर्पित अनेकों पर्वों का आयोजन करते हैं, लेकिन हममे से बहुत लोग यह महसूस करते है की हमारी प्रार्थना देवों तक नही पहुँच प़ा रही है। हमारे पूर्वज देवों और हमारे मध्य एक सेतु का कार्य करते हैं,और जब हमारे पितृ हमारी

पित्तर कौन होते है पित्तरों का महत्व संसार के समस्त धर्मों में कहा गया है कि मरने के बाद भी जीवात्मा का अस्तित्व समाप्त नहीं होता है वरन वह किसी ना किसी रूप में बना ही रहता हे। जैसे मनुष्य कपड़ों को समय समय पर बदलते रहते है उसी तरह जीव को भी शरीर बदलने पड़ते है जिस प्रकार तमाम जीवन भर एक ही कपड़ा नहीं पहना जा सकता है उसी प्रकार आत्मा अनन्त समय तक एक ही शरीर में नही ठहर सकती है। ना जायते म्रियते वा कदाचिन्नाय भूत्वा भविता वा न भूपः ऊजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे। गीता.2ए अध्याय.20 अर्थात आत्मा ना तो कभी जन्म लेती है और ना ही मरती है मरना जीना तो शरीर का धर्म है शरीर का नाश हो जाने पर भी आत्मा का नाश नहीं होता है। विज्ञान के अनुसार कोई भी पदार्थ कभी भी नष्ट नहीं होता है वरन् उसके रूप में परिवर्तन हो जाता है। व्यक्ति के सत्संस्कार होने के बाद यही अक्षय आत्मा पित्तर रूप में क्रियाशील रहती है तथा अपनी आत्मोन्नति के लिये प्रयासरत रहने के साथ पृथ्वी पर अपने स्वजनों एवं सुपात्रों की मदद के लिये सदैव तैयार रहती है। हिन्दु धर्म ग्रंथो में पितरों को संदेशवाहक भी कहा गया है| ...

पित्र दोष निवारण टोटके 10आप चाहे किसी भी धर्म को मानते हो घर में भोजन बनने पर सर्वप्रथम पित्तरों के नाम की खाने की थाली निकालकर गाय को खिलाने से उस घर पर पित्तरों का सदैव आशीर्वाद रहता है घर के मुखियां को भी चाहिए कि वह भी अपनी थाली से पहला ग्रास पित्तरों को नमन करते हुये कौओं के लिये अलग निकालकर उसे खिला दे।

पित्र दोष निवारण टोटके 1 याद रखे घर के सभी बड़े बुजर्ग को हमेशा प्रेम, सम्मान, और पूर्ण अधिकार दिया जाय , घर के महत्वपूर्ण मसलों पर उनसे सलाह मशविरा करते हुए उनकी राय का भी पूर्ण आदर किया जाय ,प्रतिदिन उनका अभिवादन करते हुए उनका आशीर्वाद लेने, उन्हे पूर्ण रूप से प्रसन्न एवं संतुष्ट रखने से भी निश्चित रूप से पित्र दोष में लाभ मिलता है । पित्र दोष निवारण टोटके 2 अपने ज्ञात अज्ञात पूर्वजो के प्रति ईश्वर उपासना के बाद उनके प्रति कृतज्ञता का भाव रखने उनसे अपनी जाने अनजाने में की गयी भूलों की क्षमा माँगने से भी पित्र प्रसन्न होते है । पित्र दोष निवारण टोटके 3 सोमवती अमावस्या को दूध की खीर बना, पितरों को अर्पित करने से भी इस दोष में कमी होती है । पित्र दोष निवारण टोटके 4 सोमवती अमावस्या के दिन यदि कोई व्यक्ति पीपल के पेड़ पर मीठा जल मिष्ठान एवं जनेऊ अर्पित करते हुये “ऊँ नमो भगवते वासुदेवाएं नमः” मंत्र का जाप करते हुए कम से कम सात या 108 परिक्रमा करे तत्पश्चात् अपने अपराधों एवं त्रुटियों के लिये क्षमा मांगे तो पितृ दोष से उत्पन्न समस्त समस्याओं का निवारण हो जाता है। पित्र दोष निवारण टोटके 5 प्...

पितृ पक्ष की समाप्ति पर पितरों की विदाईपितृ पक्ष में श्राद्ध करके पितृ अमावस्या के बाद सूर्यास्त के समय पितरों की पूर्ण आदर और श्रद्धा से विदाई अवश्य ही की जानी चाहिए । इसमें शास्त्रीय विधानानुसार सूर्यास्त के समय गंगा / नदी के तटों पर चौदह दीप प्रज्वलित कर पितरों का सिमरन करना चाहिए। इसके बाद दक्षिण दिशा की ओर मुंह कर दीपों को गंगा में प्रवाहित कर पितरों से अपनी जाने अनजाने में हुई भूलों की क्षमा माँगते हुए उनकी विदाई करें।हिन्दु धर्म में पीपल का बहुत ही प्रमुख स्थान है । पीपल में 33 करोड़ देवी देवता का वास माना गया है । भगवान वासुदेव ने भी कहा है कि वृक्षों में मैं पीपल हूँ । पीपल में हमारे पितरों का भी वास माना गया है इसलिए श्राद्ध पक्ष में तो इसका और भी ज्यादा महत्व है ।इसलिए गंगा / नदी तट नहीं होने की स्थिति पर पीपल के वृक्ष के चारों ओर दीप प्रज्वलित करके दक्षिण दिशा की ओर मुंह कर पितरों का सिमरन करते हुए उनकी विदाई करें।वैसे तो पितृ पक्ष के श्राद्ध की महिमा अपार है इसके बारे में ज्यादा कुछ भी कहने की आवश्यकता नहीं है , लेकिन जो भी व्यक्ति अपने दिवंगत माता-पिता, दादी -दादा, परदादा, नाना, नानी आदि का इन 16 श्राद्धों में व्रत उपवास रखकर या श्राद्ध के दिन गरीब से गरीब बे सहारा को पूर्ण श्रद्धा से भोजन कराकर दक्षिणा देते हैं,नित्य अपने पूर्वजों का तर्पण करते है उनके घर भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी सदैव ही विराजमान रहती हैं। अर्थात वे सदैव ही सुख, सौभाग्य धन धान्य से परिपूर्ण रहते हैं। अत: इस धरती में सभी व्यक्तियों को इन दिनों में अपने कर्तव्यों का अवश्य अवश्य ही पालन करना चाहिए ।बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम

पितृ पक्ष की समाप्ति पर पितरों की विदाई पितृ पक्ष में श्राद्ध करके पितृ अमावस्या के बाद सूर्यास्त के समय पितरों की पूर्ण आदर और श्रद्धा से विदाई अवश्य ही की जानी चाहिए । इसमें शास्त्रीय विधानानुसार सूर्यास्त के समय गंगा / नदी के तटों पर चौदह दीप प्रज्वलित कर पितरों का सिमरन करना चाहिए। इसके बाद दक्षिण दिशा की ओर मुंह कर दीपों को गंगा में प्रवाहित कर पितरों से अपनी जाने अनजाने में हुई भूलों की क्षमा माँगते हुए उनकी विदाई करें। हिन्दु धर्म में पीपल का बहुत ही प्रमुख स्थान है । पीपल में 33 करोड़ देवी देवता का वास माना गया है । भगवान वासुदेव ने भी कहा है कि वृक्षों में मैं पीपल हूँ । पीपल में हमारे पितरों का भी वास माना गया है इसलिए श्राद्ध पक्ष में तो इसका और भी ज्यादा महत्व है । इसलिए गंगा / नदी तट नहीं होने की स्थिति पर पीपल के वृक्ष के चारों ओर दीप प्रज्वलित करके दक्षिण दिशा की ओर मुंह कर पितरों का सिमरन करते हुए उनकी विदाई करें। वैसे तो पितृ पक्ष के श्राद्ध की महिमा अपार है इसके बारे में ज्यादा कुछ भी कहने की आवश्यकता नहीं है , लेकिन जो भी व्यक्ति अपने दिवंगत माता-पिता, दादी -दादा, परद...

अगर हम रोजाना 1 टमाटर खाना शुरू कर दें तो हमारे शरीर में क्या बदलाव आएगा?By वनिता कासनियां पंजाबअगर हम रोजाना 1 टमाटर खाना शुरू कर दें तो हमारे शरीर में बदलाव आएगा जो इस प्रकार है:-1. दांतों एवं हड्डियों की कमजोरी दूर होगी।2. रक्त की वृद्धि होगी।3. कब्ज दूर होगी।4. पाचन शक्ति ठीक होगी।5. स्मरण शक्ति बढ़ेगी।6. चेहरा टमाटर की तरह लाल हो जाएगा।7. मोटापा नहीं बढ़ेगा।8. चर्म रोगों से बचाव होगा।9. रोजाना खाली पेट टमाटर खाने से आपका बढ़ा हुआ भार धीरे-धीरे कम होने लगेगा।10. जीभ का मैलापन दूर होगा।11. थकावट-कमजोरी दूर होकर, चेहरे पर रौनक आएगी।12. कच्चा टमाटर खाने से त्वचा की खुश्की दूर होगी।13. टमाटर खाते रहने से अल्प दृष्टि (Night Blindness) नहीं होगी।14. रोजाना टमाटर का सेवन करने वालों को मधुमेह रोग कभी नहीं होगा क्योंकि टमाटर की खटाई शरीर में शर्करा की मात्रा को कम करती रहती है।

अगर हम रोजाना 1 टमाटर खाना शुरू कर दें तो हमारे शरीर में क्या बदलाव आएगा? By वनिता कासनियां पंजाब अगर हम रोजाना 1 टमाटर खाना शुरू कर दें तो हमारे शरीर में बदलाव आएगा जो इस प्रकार है:- 1. दांतों एवं हड्डियों की कमजोरी दूर होगी। 2. रक्त की वृद्धि होगी। 3. कब्ज दूर होगी। 4. पाचन शक्ति ठीक होगी। 5. स्मरण शक्ति बढ़ेगी। 6. चेहरा टमाटर की तरह लाल हो जाएगा। 7. मोटापा नहीं बढ़ेगा। 8. चर्म रोगों से बचाव होगा। 9. रोजाना खाली पेट टमाटर खाने से आपका बढ़ा हुआ भार धीरे-धीरे कम होने लगेगा। 10. जीभ का मैलापन दूर होगा। 11. थकावट-कमजोरी दूर होकर, चेहरे पर रौनक आएगी। 12. कच्चा टमाटर खाने से त्वचा की खुश्की दूर होगी। 13. टमाटर खाते रहने से अल्प दृष्टि (Night Blindness) नहीं होगी। 14. रोजाना टमाटर का सेवन करने वालों को मधुमेह रोग कभी नहीं होगा क्योंकि टमाटर की खटाई शरीर में शर्करा की मात्रा को कम करती रहती है।